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५४.
हरिवल्लभ भायाणी
कसबध का बदला लेने के लिए जरासन्ध ने अपने पुत्र कालयवन को बड़ी सेना के साथ भेजा" । सत्रह बार यादवों से युद्ध करके अन्त में वह मारा गया। तत्पथात् । जरासन्ध का भाई अपराजित तीन सौ छियालीस बार युद्ध करके कृष्ण के बाणों से मारा। गया। तब प्रचण्ड सेना लेकर स्वयं जरासन्ध ने मधुरा को ओर प्रयाण किया। उसके भय से अठारह कोटि यादव मथुरा छोड़ कर पश्चिम दिशा की और चल पडे । नरासन्ध ने पीछा किया । विन्ध्याचल के पास जब जरासन्ध आया तब कृष्ण की सहायक देवियों ने भनेक चिताएँ रची और वृद्धाओं के रूप लेकर जरासन्ध को समझा दिया कि उससे भागते हुए यादव कहों शरण न पाने से सभी जल कर मर गए । इस बात को - सही मान कर जरासन्ध वापिस लौटा । जब यादव समुद्र के मिकट पहुंचे तब कृष्ण और बलराम की तपश्चर्या से प्रभावित इन्द्र ने गौतम देव को भेजा । उसने समुद्र को दर हटाया । वहाँ पर समुद्रविषय : के पुत्र एवं भावि तीर्थकर नेमिनाथ की भक्ति से प्रेरित कुबेर ने द्वारका नगरी का निर्माण किया । बारह योजन लम्बी, नवं योजन चौडो और वज्रमय कोट से युक्त इस नगरी में उसने सभी के लिए योग्य आवास बनाए और कृष्ण को अनेक देवी शस्त्रास्त्र, रथ भादि भेंट किए।
... यहाँ पर पूर्वकृष्ण चरित्र समाप्त होता है । उत्तरकृष्णचरित्र के मुख्य-मुख्य विषय इस प्रकार है :
रूक्मिणीहरण, शाम्बप्रशम्नउत्पत्ति, आम्मवतोपरिणय, कुरुवंशोत्पत्ति, द्रौपदीलाभ, कीचकवध. प्रद्यम्नसमागम, शाम्बविवाह, जरासन्ध के साथ युद्ध एवं पाण्डवकोरवयक कष्ण का विजयोत्सव, द्रौपदीहरण, दक्षिणमथुरास्थापन, नेमि-निष्क्रमण, केवलशानप्राप्ति. धर्मोपदेश. विहार, द्वारावतोविनाश, कृष्ण की मृत्यु, बलराम की तपश्चर्या, पाण्डवों की प्रव्रज्या भोर नेमिनिर्वाग ।
भिन्न-भिन्न अपभ्रंश कृतियों में उपर्युक्त रूपरेखा से किस-किसी बात में अन्तर पाया जाता है । यथाप्रसंग उसका निर्देश किया जाएगा ।
अब हम कृष्णविषयक विभिन्न अपभ्रंश रचनाओं का परिचय करें । अपभ्रंश साहित्य में अनेक कवियों को कृष्णविषयक रचनाएँ हैं।
और कलियों में नेमिनाथ का चरित्र अत्यंत रूट और प्रिय विषय था और कृष्णचरित्र उसका एक अंश होने से अपभ्रंश में कृष्ण काव्यों को कोई कमी नहीं है। यहाँ पर एक त त्रिना के अनुसार पहले जरासन्ध समुद्रविजय पर कृष्ण और बलराम को उसको सौंप देने का आदेश भेजता है । समुद्रविजय इस आदेश का तिरस्कार करता है। बाद में जोतिषी की सलाह से यादव मथुरा छोड़कर चल देते हैं। जरासन्ध का पुत्र काल यादवों को मारने को प्रतिज्ञा करके आने भाई यवन और सहदेव को साथ लेकर सानों का पीछा करता है । रक्षक देवताओं द्वारा दिए गए यादवों के अग्निप्रवेश के समाचार सही मान कर वह प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए स्वयं अग्निप्रवेश करता है।
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