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________________ हरिवल्लभ भायाणी के राजा सिंहरथ को जीन्दा पकड़ उसे सौपेगा उसको कुमारी जीवद्यशा एवं मनपसंद एक नगर दिया जाएगा। वसुदेवने यह कार्य उठा लिया। संग्राम में सिंहरथ को यसदेव के कंस नामक एक प्रिय शिष्य ने पकड़ लिया। अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार जीवद्यशा देने के पहले जरासंघ ने जब अज्ञातकुल कंस के कुल की जांच की तब पता चला कि वह उग्रसेन का ही पुत्र था। जब वह गर्भमें था तब उसकी जननी को पतिमांस खाने का दोहद हुआ था। पत्र कहीं पितघातक होगा इस भय से जननी ने जन्मते ही पुत्र को एक कांसे की पेटी में रखकर यमुना में बहा दिया था। एक कलालिन ने पेटी में से बालकको निकालकर अपने पास रख लिया था। कंस नामक यह बालक जब बड़ा हुआ तब उसकी उग्र कलहप्रियता के कारण कलालिनने उसको घर से निकाल दिया था। तबसे वह धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त करता हमा बसदेव के पास ही रहता था और उसका बहुत प्रीतिपात्र बन गया था। इसी सपत सने भी पहली बार अपना सही वृत्तान्त जामा । सो उसने पिता से अपने बेर का बदला लेने के लिये जरासन्ध से मथुरानगर मांग लिया। वहीं ना कर उसने अपने पिता उग्रसेन को परास्त किया और उसको बंदी बनाकर दुर्ग के द्वार के समीप रख दिया। कसने वसुदेव को मथुरा बुला लिया और गुरुदक्षिणा के रूप में भपनी बहन देवकी उसको दी। 'देवकी के विवाहोत्सव में जीवद्यशाने 'अतिमुक्तक मुनि का अपराध किया' । फलस्वरूप मनिने भविष्यकथन के रूप में कहा कि जिसके विवाह में मत्त होकर नाच रही हो उसकेही पुत्र से तेरे पति का एवं पिता का विनाश होगा । भयभीत जीवधशा से यह बात जान कर कंसने वसुदेव को इस वचन से प्रतिबद्ध कर दिया की प्रत्येक प्रसूते के पूर्व देवकी को बाकर कंसके आवास में ठहरना होगा। बाद में कंसका मलिन आशय ज्ञात होने पर वसुदेव ने बाकर अतिमुक्तक मुने से जान लिया कि प्रथम छह पुत्र चरमशरोरी होंगे इसलिए उनकी अपमृत्यु नहीं होगी और मातषां पुत्र वासुदेव बनेगा और वह कंसका घातक होगा। इसके बाद देवकी ने तीन बार युगलपुत्रों को जन्म दिया। प्रत्येक बार इन्द्राशा से नेगम देवने उनको - उठाकर भद्रिलनगर के सुदृष्टि श्रेष्ठी की पत्नी अलका के पास रख दिया और अलका के मृतपुत्रों को देवको के पास रख दिया। इस बात से अज्ञात कंस प्रत्येक बार इन मृत पुत्रों को पटक कर समझता कि मैंने देवकी के पुत्रों को मार डाला। देवकी के सातवें पुत्र कृष्ण का जन्म सात मास के गर्भवाम के बाद भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को रात्रि के समय हुभा४ । बलराम नवजात शिशु को उठ कर घर से बाहर निकल १. दीक्षा लेने के पूर्व अतिमुक्तक कंस का छोटा भाई था। हपु. के अनुसार जीवद्यमा ने हंसते-हंसते अतिमुक्तक मुनि के सामने देवकी का रजोमलिन बस्त्र प्रदर्शित कर उन की आशातना की । त्रिच. के अनुसार मदिरा के प्रभाववश जीवद्यशा ने अतिमुक्तक मुनि को गले लग कर अपने साथ नृत्य करने को निमंत्रित किया । ... २. त्रिच० के अनुसार जन्मते ही शिशु अपने को सौंप देने का वचन कंसने वसुदेव से ले लिया । ३. त्रिच० में सेठसेठानी के नाम माग ओर सुलसा हैं। ४. त्रिच० के अनुसार कृष्णजन्म की तिथि और समय श्रावण कृष्णाष्टमी और मध्यरात्री है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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