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म. विनयसागर
तपागच्छीय प्रसिद्ध विद्वान श्री देवेन्द्ररि के शिष्य श्री धर्म धोषसरि' विहार करते हुए बीजापुर आये और वहाँ चातुर्मास किया । आचार्य के उपदेश से प्रभावित होकर पेथड़ ने परिग्रहप्रमाण का व्रत ग्रहण किया। 'मालव देश में तेरा भाग्योदय है' ऐसा आचार्य से संकेत प्राप्त कर, पेथद माण्डवगढ आकर रहने लगा । माण्डवगढ़ में परमारवंशीय जयसिंह भूपति का राज्य था । माण्डवगढ में नमक और घी का व्यापार करते हुए एक घी बेचने वाली महिला से पेथड़ को 'चित्रकवेली' प्राप्त हुई। चित्रकवेली के प्रभाव से पेथड़ कोट्याधीश बना । राजा के साथ मैत्री हुई, राजा से छत्र-चामर आदि राज्याधिकार प्राप्त कर सम्मानित हुआ । पेथड़ का पुत्र झांझण था । झांझण का विवाह दिल्ली निवासी भीम सेठ की पुत्री सौभाग्यदेवी से हुआ । शाकंभरी नरेश चौहान गोगादे ने पेथड़ को बुलाकर उससे वित्रावे की मांगी ओर पेथड़ ने उन्हें प्रदान कर दी । पेथड़ ने जीरावला पार्श्वनाथ और आबूतीर्थ की यात्रा की।
.एक समयः आचार्य, धर्म घोषसूरि के मंडपदुर्ग पधारने पर पेथड़ ने ७२००० का व्यय कर बड़े महोत्सव के साथ नगर प्रवेश करवाया। उनके उपदेशों से बोध प्राप्त कर पेथशाह ने भिन्न-भिन्न स्थानों पर ८४ जिनमन्दिरों का निर्माण करवाया । मण्डपदुर्ग (मांडवगढ) में १८ लाख द्रम्म खर्च कर ७२ जिनालय वाला शत्रुजयावतार ऋषभदेव का मंदिर बनवाया और शत्रुजय तीर्थ पर शान्तिनाथ का विशाल जिनालय बनवाया। औंकारेश्वर में श्रेष्ठतम तोरण युक्त मन्दिर बनवाया। ओंकार नगर में सत्रागार (सदाव्रत स्थान) खोला । शत्रुजय और गिरनार तीर्थ की संघ के साथ यात्रायें की । गिरनार की यात्रा के समय अलावद्दीन खिलजो द्वारा मान्य दिल्ली निवासी संथपति पूर्ण अग्रवाल जो कि दिगम्बर जैन था के साथ सेघर्ष होने पर भी संघपति की इन्द्रमाल पहले पेथड़ ने ही पहनी ।
पेथद ने विपुल द्रव्य खर्च कर, भृगुकच्छ (भरुच), देवगिरि, माण्डवगढ़, आबू, आदि सात स्थानों पर जैन ज्ञान भण्डार स्थापित किये और उन भण्डारों में सहस्त्रों प्राचीन और अर्वाचीन (नवीन लिखाकर ), ग्रन्थ उनः भण्डारों में स्थापित किये ।
. आचार्य धर्म पोषसूरि के मुख से ग्यारह अंगों का श्रवण किया । भगवती सूत्र का श्रवण करते हुए जहाँ-जहाँ गौतम शब्द आया वहाँ-वहाँ एक-एक स्वर्ण मुद्रा चढ़ाई । इस प्रकार ३६००० स्वर्ण मोहरों से भगवती सूत्र की पूजना की।
- पेथड़ के पुत्र झांझण ने आचार्य धर्म घोषसूरि के सान्निध्य में, मांडवगढ से वि० सं० thimovi तीर्थयात्रार्थ विशाल यात्री संघ निकालो जिसका विशद वर्णन अनेक. कृतियों में प्रासः इस संघ का संघपति झांझम ही था । इसमें पेथड़ का उल्लेख न होने से यह संभाकि १३४० के पूर्व ही पेथड़ का स्वर्गवास हो गया था।
...१. तपापाच्छ पदावली के अनुसार इनको आचार्य पद वि० सं० १३२३ या १३०४ में प्रास इसा था. और.स. १३५६, में इनका स्वर्गवास हुआ था । गुर्जराधीश इनका मित्र था और ये बड़े चमत्कारी, प्रभावशाली आचार्य थे ।
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