SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी नाथ के धरणेन्द्र -पदमावती के हो पारम्परिक लक्षणों से परिचित था । महावीर के साथ निरूपित यक्ष-यक्षी पारम्परिक लक्षणों वाले नहीं हैं। महावीर के मातंग-सिद्धायिका यक्ष-यक्षी स्वतन्त्र लक्षणों वाले हैं, जो सम्भवतः किसी स्थानीय परम्परा से निर्देशित हैं जो वर्तमान में हमें उपलब्ध नहीं है । अन्य जिने के यक्ष-यक्षी विशिष्टतारहित और सामान्य लक्षणों वाले हैं । सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी के करों में अभय ( या वरद ) मुद्रा, पद्म, मुद्राकोश, कलश एवं फल में से कोई दो सामग्री प्रदर्शित हैं। ऋषभनाथ . प्रथम जिन ऋषभनाथ के साथ लटकती जटाओं और वृषभ लांछन का अंकन हुआ है। कभी दोनो पावों में पांच और सात सर्प फणों के छत्र वाले सुपार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियां भी बनो हैं। जार्डिन संग्रहालय (क्रमांक १६५१ ) की एक विशिष्ट मूर्ति में ऋषभनाथ के पारम्परिक यक्ष-यक्षी, गोमुख-चक्रेश्वरी, के साथ ही लक्ष्मी एवं अंबिका की भी, मूर्तिया उत्कीर्ण हैं, जो ऋषभनाथकी विशेष प्रतिष्टा की सूचक हैं । एक उदाहरण में परिकर में बाहुबलो को लघु मूर्ति बनी है । गोमुख-चक्रेश्वरी के निरूपण में मुख्य लक्षणों के संदर्भ में दिगम्बर ग्रंथों के निर्देशों का पालन किया गया है। कुछ उदाहरणों में यक्ष के रूप में मुद्राकोश धारण किये हुए कुबेर का भी अंकन हुआ है। जिन- संयुक्त मूर्तियों में गोमुख यक्ष के साथ कभी-कभी वृषभवाहन (पाश्र्वनाथ मन्दिर-गर्भगृह ) प्रदर्शित हैं । गोमख यक्ष के करों में सामान्यतः अभय (या वरदमुद्रा,) गदा ( या परशु), पुस्तक (या पद्म ) एवं कलश (या फल) प्रदर्शित हैं । गरुडवाहना चक्रेश्वरी के करों में सामान्यतः वरद (या अभय-) मुद्रा , गदा. ( या चक्र ), चक्र एंव शंख हैं । गोमुख यक्ष की स्वतन्त्र मूर्ति नहीं मिली है । पर चक्रेश्वरी यक्षी की कम से कम १३ स्वतन्त्र मर्तियां हैं । यक्षियो में अम्बिका के बाद चक्रेश्वरी ही सर्वाधिक लोकप्रिय थीं। पिरीट मकट से शोभित चक्रेश्वरी गरुड (मानव रूप में) पर आरूढ और चार से दस हाथों वाली हैं। घण्टई और पार्श्वनाथ मन्दिरों के ललाटबिबों में चक्रेश्वरी की आठ और दस भुजाओं वाली मूर्तियां हैं । चक्रेश्वरी के हाथों में चक्र, शंख, गदा और अभय ( या वरद-) मुद्रा का नियमित प्रदर्शन हुआ है । अतिरिक्त हाथों में चक्र, खड्ग, धनुष, बाण एवं कलश आदि प्रदर्शित है। देवी स्पष्टतः हिन्दु देवी वैष्णवी के लक्षणों से प्रभावित है। सुपार्श्वनाथ सातवें जिन सुपार्श्वनाथ का लांछन स्वस्तिक है । पर मूर्तियों में स्वस्तिक लांछन नहीं प्रदर्शित किया गया है । केवल पाँच या नो सर्पफणों के छत्रों के आधार पर ही सुपार्श्वनाथ की पहचान की जा सकी हैं। इनकी दो मूर्तियाँ ( ११ वी -१२ वों शती ई०) मन्दिर ५ और २८ में है। दोनों यक्ष-यक्षी अनुपस्थित हैं। . नेमिनाथ नामनाथ . . । २२. वें जिन नेमिनाथ की केवल दो ही मूर्तियां (के० १४, ११वीं-१२वीं शती ई०) हैं। इनमें ध्यानमुद्रा में विराजमान नेमिनाथ के साथ लांछन शंख है, और यक्ष-यक्षी के रूप में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520760
Book TitleSambodhi 1981 Vol 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages340
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy