SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वाध्याय REVIEWS आगमशब्दकोश ( अंगसुत्ताणि शब्दसुची) भाग १, वाचनाप्रमुख, आचार्य तुलसी, संपादक, युवाचार्य महाप्रज्ञ, प्रकाशक जैन विश्व भारती, लाडनू ( राजस्थान ), १९८० पृ०८२३। मूल्य, पचासी रुपये । इतःपूर्व जैन विश्वभारती ने 'अंगसुत्ताणि' नाम से तोन भागों में ११ अंग आगमों का प्रकाशन १९७४ में किया था। किन्तु उनमें शब्दसुची नहीं दी गई थी। इस. कमी की पूर्ति इस कोष से हो जाती है । इस कोश को अंग्रेजी में जिसे 'कोन्कोर्डन्स' कहा जाता है-यह नाम देना चाहिए, क्योंकि इसमें संगृहीत शब्द सभी अंगों में कहाँ कहाँ उपयुक्त है इसका निर्देश किया गया है। वेदों का ऐसा ही कोष ई. १९०६ में बन चुका है और पालि पिटक का ई. १९५२ से प्रकाशित होने लगा है। ___यदि कोई शब्द तद्भव या तत्सम है तो संस्कृत रूपान्तर भी कोष्ठक में दिया गया है और देशी शब्दों के लिए 'दे' संज्ञा दी गई है। किन्तु अर्थ हिन्दी या अंग्रेजी में नहीं दिया गया। फिर भी समान रूप वाले शब्द यदि भिन्नार्थक है तो उनका निर्देश पृथक्. रूप से किया गया है और आगमों का स्थल निर्देश किया गया है । इस दृष्टि से संशोधन करनेवालों को यह एक उपयुक्त साधन जैन विश्व भारती ने उपस्थित किया है एतदर्थ वे ऋणी रहेंगे ही। आचार्य श्री तुलसी के निवेदन के अनुसार आगमकोष दो खण्डों में प्रकाशित होगा। और प्रस्तुत कोश प्रथम खण्ड का प्रथम भाग हैं। दूसरे भाग में शेष आगमों की सूची रहेंगी। और दूसरे खण्ड में आगम तथा उनके व्याख्या साहित्य के पारिभाषिक एवं विशिष्ट भर्थवाले शब्द, उनके उपलब्ध निरुक्त, संदर्भ पाठ, अर्थ आदि रहेंगे। इस प्रकार यह आगमकोष की योजना के द्वारा विद्वज्जनों को बहुत लाभ होगा इसमें संदेह नहीं है। 'संकेतबोध' में प्र०प्रकीर्णक लिखा गया है। एक ओर यह कहा गया कि प्रस्तुत प्रथम भाग में केवल 'अंगसुत्ताणि' के शब्द संगृहोत है तो यह 'प्रकर्णक' से क्या तात्पर्य है यह ठीक से समझाया नहीं गया। "चतुःशरण" आदि प्रसिद्ध प्रकीर्णकों के नाम 'भूमिका' में 'अंगबाह्य' में समाविष्ट किये गये हैं । तो यहाँ 'प्रकीर्णक' से क्या तात्पर्य है यह बताना आवश्यक था । यह कोष संशोधकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है इसमें संदेह नहीं है । दलख मालवणिया बौद्धदर्शन की पृष्ठभूमि में न्यायशास्त्रीय ईश्वरवाद लेखक-डा. किशारनाथ झा, प्रकाशक शेखर प्रकाशन, २० ची, जवाहरलाल नेहरू रोड, टेगोर टाउन, इलाहाबाद-२, पृ. १६१२६६, मूल्य पैतीस रुपये। । प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने प्रमुख नैयायिकों की ईश्वरसाधक युक्तियाँ ओर प्रमुख बौद्ध दार्शनिकों की ईश्वरबाधक युक्तियाँ संगृहीत की है और उन सबका समुचित प्रान्चल विवेचन करने का प्रयास भी किया गया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520759
Book TitleSambodhi 1980 Vol 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages304
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy