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अगरचंद नाहटा
मान ही नहीं थे । बृहद तपगच्छ की पटावली जो नयसुन्दर उपाध्याय ने गुरु परिपाटी या 'बृहद तपोगण गुर्वावली की रचना देवरत्न सूरि के समय की थीं। उसके अनुसार ५८ वें पटधर धनरत्नसूरि हुए । उनके शिष्य उपा० भानुमेरु गणि के २ शिष्य थे । जिनमें बड़े का नाम वाचक मणिग्न था । उनके छोटे गुरुभाई कवि नयसुन्दर थे। कवि की अब तक -ज्ञात गुज, रचनाओं की सूची इस प्रकार है
१. रूपचन्द कुवर रास, सं० १६३७ मिघसरसुदी ५ रविवार, बीजापुर । अ. . २. शत्रुजय उद्धार रास, सं० १६३८ आसोजसुदी १३ अहमदाबाद । प्र. ३. प्रभावती रास, सं० १६४० आसोजसुदी ५ बुधवार, बीजापुर । ४. सुरसुन्दरी रास, सं० १६४६ जेठ वदी १३ विसाख नक्षत्र सिद्धयोग | अ.. ५. गिरनार उद्धार रास, गाथा १८४, दधि ग्राम में रचित । प्र. ६. संखेश्वर पार्श्वनाथ छन्द गाथा १३२ सं० १६५६ । ७. नलदमयंती रास सं० १६६५ पोह सुदी ८ मंगलवार, बीजापुर । प्र. ८. शील शिक्षा रास सं० १६६९ भाद्रवा, इसमें विजयसेठ को कथा है। ९. आत्म प्रतिबोध गाथा ८२ विजयसुन्दर सूरि के समय रचित । १०. शान्तिनाथ स्तवन, गाथा ६४. राजनगर में रचित ।
११. यशोघर चौपाई, सं० १६७८ पोह सुदी १ गुरुवार । इससे कवि का काव्य रचना काल सं० १६३७ से ७८ तक अर्थात् ४१ वर्षों का सिद्ध : होता है । अब हमारी खोज से जो कवि की एक अज्ञात व महत्वपूर्ण रचना प्राप्त हुई है, उसका विवरण दिया है।
. इस अज्ञात रचना का नाम है श्री नेमिनाथ वसंत विलास, मदनजय प्रबंध । ३०२ गाथाओं का यह काव्य सं० १६५९ आसाडवदी ६ को रखा गया है। इसमें वसंतऋतु का सुन्दर वर्णन गाथा ६६ से ७८ तक में प्राप्त होता है । इसीलिए इसका नाम ऋतु विलास रखा है और इसमें नेमिनाथ जी के कामदेव पर विजय प्राप्त करने का प्रसंग वर्णित होने से इसका नाम 'कामदेव प्रबन्ध' भी रखा गया है। इस काव्य की १३ पत्रों की एक मात्र प्रति श्री विजयमोहन सूरीश्वर शास्त्र संग्रह में प्राप्त हुई है। जो जैन साहित्य मन्दिर, पालीताणा में सुरक्षित है । यह प्रति सं० १६७४ के कार्तिकसुदी १३ गुरुवार की रिसी कुंवरजी ने लिखी है । इस काव्य के आदि अन्त के कुछ पद्य नीचे दिये जा रहे हैं। काव्य प्रकाशन योग्य है । कवि की एक सरस रचना है। आदि-माइधन सुपत नु ए ढाल
गणहर सिरिसोहम मुख मंडपि जा नाची, शासनश्रुतदेवा संभारु सा साची ।
मिग्निमिजिणेसर अलवेसर अरिहंत. सीलादिक गुण मणि रोहणगिरि भगवंत ॥ ऋटक-रोहणगिरि भगवंत भजु, नित एकमना आराहूँ।
पातक एक कलंक परजालु, तनु मनइ निरमल थाऊ । साचु सीलवंत सोहगनिधि, दयावंत दातारो। तो म्वामी संथुणु सुभावइ, निरुपम नेमिकुमारो ॥१॥
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