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कर्म प्रकृति- टोकानी एक अमूल्य हस्तप्रति
परंतु, अहों जे 'कमप्रकृति-टीकाग्रंथानी प्रतिनो परिचय आपवानो छे, ते तो उपाध्यायजीए पोते रचेलो होवा छतां, तेनो नकल अथवा तो तेनो प्रथम आदर्श लखवामा, उपाध्याय जीने, तेमना साथी साधुओ सहायक बन्या छे.
'कर्मप्रकृति-टीकाग्रंथ'नी आ प्रति पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसुरीश्वरजीना अंगत ग्रंथसंग्रहमांनी छे. ए प्रति वि० सं० १७१७मां घोघाबंदरे विराजता उपाध्यायजी (ते वखते तेओ 'पण्डित' हता) ए अने तेमनी साथेना मुनिओए मळीने लखी छे, एम तेनी प्रतिपुष्पिका वांचतां समजाय छे. ए प्रतिनी शरूआत आ रीते थाय छे :
__'महोपाध्याय श्री १९ श्र कल्याणविजयगणि शिष्य मुख्य पण्डित श्री५ श्रीलाभविजयगणि शिष्य शिरोमणि पंडित श्री श्री श्रीनयविजयगणि गुरुभ्यो नमः ।"
अने प्रतिने अन्ते प्रशस्ति पूरी थया पछीनी पुष्धिका आ प्रमाणे छे:
"पं. श्री जसविजय गपि नवोन रचना कृतः श्रीघोघ वेलाकूले संवत् १७१७ बर्षे कार्तिकमासे शुभवासरे सकलसमुदायेन लिपिकृतः यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा तादृशं लिखितं मया यदि शुरुमशुद्ध वा मम दोषो न दं यते १ श्रेयः ॥"
प्रस्तुत प्रतिनी पृष्ठ संख्या १६३ छे. जुदा जुदा लेखकोना अक्षर जुदा जुदा होय ए रंगते तपासतां लगभग सातथी आठ जेटला अक्षर प्रकार आ प्रतिमां होवानु जणाय छे. (अहीं उल्लेखनीय छे के 'द्वादशार-नयचक्र'नी प्रति पण सात मुनिवरोए मळीने लखी हती.) अने ए ज कारणे, पृष्ठगत पंक्तिनी संख्या पण अचोकस छे. छतां ते ओछामा ओछी १८नी छे अने वधुमां वधु २५नी छे. २५नी संख्या पण, उपाध्यायजीना पोताना अक्षर प्रमाणमां वधु झीणा होवाथी, तेमणे लखेलां पृष्ठोमा ज जोवा मळे छे. उपाध्यायजीनां लखेलां पृष्ठो पृ. ९२थी१४१ एटले कुल ४९ छे.
प्रतिनी साइझ २५४११ से० मि. छे.
केटला दहाडामां आ प्रति लखाई तेनो, 'द्वादशार'नी प्रतिमा छे तेवो, स्पष्ट उल्लेख आमां नथी. तो पण पुष्पिकामां 'कार्तिकमासे शुभवासरे ए बे पदोमांथी एवो निर्देश मळी रहे छे के आ प्रति कार्तक महिनामां ज लखाई होवी जाईए. एटले कार्तक मासमां शरू करीने तेनी लेखन समाप्ति पण ते ज मासमां थई होवाथी 'कार्तिकमासे' लख्यु. परन्तु तेना लेखन दिवसो घणा (वधुमां वधु ३०) थया हशे एटले, अन्यत्र जेम समाप्तिना दिवसने ज नोधवानी प्रवृत्ति जोवाय छे तेम आ प्रतिमां, अन्त्य दिवसने न नोंधतां. समग्र लेखनकाळने ज 'शुभवासर' गणीने 'शुभवासरे' एम नोंध्यु होवु जोईए.
वळी छेल्ले पेलो 'यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा' प्रचलित श्लोक लख्यो छे, ते उपरथी समजाय छे के उपाध्यायजीए आ ग्रन्थनो जे 'खरडों' तैयार करेलो, तेनी प्रतिनां पानां सौ मुनिओने भागे पडतां आपी दीधां हशे, अने ते उपरथी सौए नकल करी हशे. अर्थात, जे 'खरडा' ने आदर्श राखोने अ प्रति लखाई छे, ते 'खरडा'नी प्रति क्यांकथी मळी आवे एवी आपणे आशा राखवी जोईए अने ते शोधवानो प्रयत्न पण करवो जोईए.
प्रस्तुत प्रतिनी प्रतिकृतिरूप चार पानांनी छचीओ आ लेख साथे आपी छे. आवी भमूल्य प्रति आज सुधी जळवाई ते पण आपणां सद्भाग्यरूप छे. वधु नोंधपात्र बाबत तो ए छे के आ प्रतिने कोई विद्वान मुनिराजे वांची छे अने तेना पुरावारूपे ते वांचनारे प्रतिमां घणां स्थाने पेन्सिलथी टिप्पणी वगेरे लखेल छे अलबत्त, ए पेन्सिलनां अक्षरो पण ५० वर्ष करतां वध जुनां लागे छे.
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