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श्रावक कवि गंगकृत गीता
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राग रामगिरी ॥ जितारिरायकुमार, त्रिभुवन तारणहार, तिजीय राज लीधउ संयमभार, मोह मयण वसि कर, अनेकदुःकृतहर, केवल कमशावर, जगत्रगुर, वंदु वंदु भविका जन संभव जिन जीवन, चतुरसई धनुषतनु, अश्व लंछन, वाणीय गम्भीर गाजइ, अनेक संदेह भाजइ, ढलइ छत्र चमर, दुंदुभि वाजइ. १. दू० समोरसरण जाणी आवयई इन्द्र इंद्राणी, योजन विस्तरइ वाणी, मनि सुहाणी, सुरकन्या नाचइ अपार, ताल मादल धुधं कार,
ओलग सारइ सुर तुह्म मुक्ति दातार. २. वंदु वंदु० निर्मल जसकीर्ति शत्र मित्र समचित्त, सई जोयण पणवीस सप्तइ तिन हुंति, जगत्र जंतु साधार, सेना राणा मल्हार, भणतु गंग मझ आवागमण निवारु. ३
इति गोतं ॥
[४]
राग रामगिरी सोल सहस गोपी मली धवल गाई, तोरणि आइला नेमिजिन त्रिभुवनचा राया. माइ माहरा रे यादवजन तइ का प्रीति ऊपाइ ? अष्ट भवंतर नेह प्रतिपाली नुमि गयु चित लाइ रे. २ दू. पसूय बंधन छोडी, रिदय विचारी, ऊजलि गिरिवरि वरी संयम नारी. ३. माइ माह. नेमि वचन सूणी आरति भागी, गंगचा स्वामी केरी बांहुडी विलागी. ४. माइ माह.
इति नेमिनाथ गोतं ॥
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