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________________ ६ मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी यक्ष स्टैचू फ्राम राजघाट, छविः गोल्डेन जुबिली वाल्यूम ऑव दि भारत कला भवन, वाराणसी, १९७१, पृ० ३४०-४२ । (१२) डा० अग्रवाल ने स्वस्तिक को द्यावापृथिवी के मण्डल के चतुर्भुजी आधार का प्रतीक और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के साथ संबंधित चार दिशाओं का मूर्त रूप माना है । उन्होंने ब्रह्मा के चार मुखों को चार दिशाओं का प्रतीक माना है जिससे स्वस्तिकका रूप संपन्न होता था- द्रष्टव्य, अग्रवाल, वी० एस० भारतोय कला पृ० ३३६, ३४३ । क्या यह संभव नहीं कि जिन चौमुखी में चार दिशाओं में चार जिनों का चित्रण भी स्वस्तिक की ही कल्पना से प्रभावित रहा हो ? (१२) अशोक का सारनाथ सिंह शीर्ष स्तम्भ इस दृष्टि से उल्लेखनीय है जिसमें स्तम्भ शीर्ष पर चार दिशाओं में चार सिंह आकृतियां पोठ बटाए उत्कीर्ण हैं । (१३) उल्लेखनीय है कि चौमुखी मूर्तियों में जिन अधिकांशतः कायोत्सर्ग मुद्रा में ही निरूपित हैं । (१४) शेष दो मूर्तियां नेमिनाथ एवं महावीर की हो सकती हैं, क्योंकि कुषाण काल में मथुरा में इन दोनों जिनों की स्वतन्त्र मूर्तियां पर्याप्त संख्या में उत्कीर्ण हुई । कृष्ण और बलराम के चचेरे भाई होने के कारण नेमिनाथ का मथुरा में विशेष सम्मान था । कुषाण काल तक इन जिनों के लक्षण निर्धारित नहीं हुए थे, इसी कारण चौमुखी मूर्तियों में इनकी निश्चित पहचान संभव नहीं है । ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ की मूर्तियां चौमुखी में सदैव एक दूसरे से विपरीत दिशा में उत्कीर्ण हैं । दो अन्य दिशाओं की मूर्तियां भी परस्पर विपरीत दिशा में हैं। चोमुखी में जिन मूर्तियों की उपर्युक्त स्थिति भी ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर की मूर्तियां स्वीकार करने में बाधक नहीं हैं । I (१५) द्रष्टव्य, दे, सुधीन, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० २७ । (१६) अमेरिकन इन्स्टीट्यूट आव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह ८२. ३९, ८२.४० । (१७) जैन, नीरज, 'पुरातात्विक संग्रहालय, ग्वालियर की जैन मूर्तियां' अनेकान्त, वर्ष १६, अं० ५, पृ० २१४ । (१८) अमेरिकन इन्स्टीट्यूट आव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह १५६. ७१, १५६.६८ । (१९) श्रीवास्तव, त्री० एन, केटलाग ऐण्ड गाईड टू गंगा गोल्डेन जुबिली वाल्यूम, बीकानेर, बम्बई, १९६१, पृ० १९ । (२०) शाह, यू०पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, बम्बई, १९५९, पृ० ६०-६१, फलक ७० - ए, ७० त्री, ७१-ए । (२१) मूलनायक की मूर्तियां संप्रति सुरक्षित नहीं हैं । (२२) चंद्र, प्रमोद, स्टोन स्कल्पचर इन दि एलाहाबाद म्यूजियम, बम्बई, १९७०. पृ० १४४ । (२३) ठाकुर, एस० आर०, म्यूजियम, ग्वालियर, लश्कर, पृ० पृ० ३० । Jain Education International केलाग आव स्कल्पचर्स इन दि आर्किअलाजिकल २०, अग्रवाल, वी० एस. मथुरा म्यूजियम केटलाग For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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