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________________ सर्वतोभद्रिका जिन मूर्तियां दिशाओं में ऋषभनाथ, चन्द्रप्रभ, पावयाथ एवं महावीर को मूर्तियां उत्कीर्ण है। बंगाल के विभिन्न स्थलों से प्राप्त दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की कई मूर्तियां स्टेट आर्कियालाजी गैलरी, बंगाल में संग्रहीत हैं। पक्बीरा ग्राम (पुरुलिया) की दसवों-ग्यारहवीं शती ई. की एक मूर्ति में ऋषभनाथ, कुंथुनाथ, शांतिनाथ, एवं महावीर की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।33 अंबिका नगर (बांकुडा) से प्राप्त एक मूर्ति में केवल ऋषभनाथ, चन्द्रप्रभ एवं शांतिनाथ की पहचान सम्भव है। पाद-टिप्पणी (१) एपिप्राफिया इण्डिका, खं० २, (कलकत्ता, १८९४), दिल्ली १९७० (पुनमुद्रित), पृ० २०२-३, २१० । भट्टाचार्य, ब० सी०, दि जैन आइकानोग्राफो, लाहौर, १९३९, पृ० ४८ । अग्रवाल, वो० एस०, मथुरा म्यूजियम केटलॉग, भाग ३, - वाराणसी, १९६३, पृ० २७ । दे, सुधीन, 'चौमुख एक सिम्बॉलिक जैन आर्ट', जैन जर्नल, खं० ६, अं० १, जुलाई १९७१, पृ० २७ । (२) एपिमाफिया इण्डिका, खं० १, कलकत्ता, १८९२, पृ० ३८२; लेख सं० २, सं० २, पृ० २०३, लेख सं० १६ । (३) वही, खं० २, पृ. २०२, लेख सं० १३ । (४) वही, ख० २ पृ० २०९-१०, लेख सं० ३७ । ..... (४) वही, खं० २, पृ० २११ लेख सं० ४१ । (६) द्रष्टव्य, शाह, यू० ५०, स्टडीज इन जैन आर्ट, वाराणसी, १९५५ पृ०९४-९५ । दे, सुधीन, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० २७ । श्रीवास्तव बी० एन०, 'सम इन्टरेस्टिग जैन स्कल्पचर्स इन दि स्टेट म्यूजिम, लखनऊ', संग्रहालय पुरातत्त्व पत्रिका, अं० ९, जून १९७२, पृ. . (७) द्रष्टव्य, आदि पुराण २२. १९५, २३. ९२ । त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र १. ३. ४२२-६८६ । भण्डारकर, डी० आर०, 'जैन आइकानोग्राफी-समवसरण', इण्डियन ऐण्टिक्वेरी • खं० ४., पृ० १२५-३० । (८) समवसरण की धारणा सर्वप्रथम मथुग की एक चौमुखी मूर्ति में ही अभिव्यक्त हुई । पीठिका लेख में मूर्ति को महावीर की जिन चोमुखी (वर्धमानश्चतुर्बिरः) बताया गया है- द्रष्टव्य, एपिग्राफिया इण्डिका, खं० २, पृ० २११, लेख ४१। . (९) मथुरा से कुषाणकालीन एकमुखी और पंचमुखी शिवलिंगों के उदाहरण मिले हैं। पंचमुखी शिवलिंग में चार मुख चार दिशाओं में हैं और एक सबसे ऊपर है-द्रष्टव्य, अग्रवाल वी० एस०, भारतीय कला . वाराणसी, १९७७ पृ० २६७-६८ । गुडीमल्लम (दक्षिण भारत) के पहली शती ई. पु. के शिवलिंग में लिंगम् के समक्ष स्थानक मुद्रा में शिव का मानवाकृति उत्कीर्ण है द्रष्टव्य, बनी, जे० एन०, दि डोवेलपमेण्ट ऑव हिन्दू आइकानोग्राफी कलकत्ता, १९५६, पृ० ४६१ । शुक्ल, डी० एन०, प्रतिमा विज्ञान, १९५६, लखनऊ, पृ० ३१५; पाण्डेय, दोन बन्धु, 'प्रतिमा सर्वतोद्रिका' राज्य संग्रहालय, लखनऊ में २८ और २९ जनवरी १९७२ को जैन कला पर हुए संगोष्ठी में पढ़ा लेख । (१०) राजघाट (वाराणसी) से मिली परवती शुगकालीन एक त्रिमुख यक्ष मूर्ति में तीन दिशाओं में तीन यक्ष भाकृतियां उत्कीर्ण हैं- द्रष्टव्य, अग्रवाल, पी० के०, 'दि ट्रिपल . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520758
Book TitleSambodhi 1979 Vol 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1979
Total Pages392
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size8 MB
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