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सर्वतोभद्रका जिन मूर्तियां
अ हम विभिन्न क्षेत्रों की चौमुखी मूर्तियों का अलग-अलग अध्ययन करेगें । राजस्थान - गुजरात
गुजरात और राजस्थान में श्वेताम्बर स्थलों पर जिन चौमुखी का उत्कीर्णन विशेष लोकप्रिय नहीं था । इस क्षेत्र से दोनों वर्गों की चौमुखी मूर्तियां मिली हैं । दूसरे वर्ग की मूर्तियों में मथुरा की कुषाणकालीन चौमुखी मूर्तियों के समान केवल ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की ही पहचान सम्भव है ।
जीना (भरतपुर) से प्राप्त नवीं शती की एक दिगम्बर मूर्ति भरतपुर राज्य संग्रहालय (३) में है (चित्र - ३) । " इसमें जटाओं से शोभित ऋषभनाथ की चार कायोत्सर्ग मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ल० ग्यारहवीं शती ३० की दो मूर्तियां बोकानेर संग्रहालय (१६७२) एवं राजपुताना संग्रहालय अजमेर (४९३ ) में हैं । इनमें ध्यानमुद्रा में विराजमान जिनों के साथ लांछन उत्कीर्ण नहीं हैं ।
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अकोटा से दूसरे वर्ग की दशवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की तीन श्वेताम्बर मूर्तियां मिली हैं । मूर्तियों के ऊपरी भाग शिखर के रूपमें निर्मित हैं। सभी उदाहरणों में जिन आकृतियां ध्यानमुद्रा में बैठी हैं । इनमें केवल ऋषभनाथ एवं पार्श्वनाथ की ही पहचान संभव है। बारहवीं शती ई० की एक मूर्ति विमल वसही की देवकुलिका १७ में सुरक्षित है ।" यहाँ जिनों के लांछन उत्कर्ण नहीं हैं, पर यक्ष-यक्षी निरूपित हैं । यक्ष-यक्षी के आधार पर केवल दो ही जिनों, ऋषभनाथ एवं नेमिनाथ की पहचान संभव है । जिनों के सिंहासनों पर चतुर्भुज शांति देवी और तोरणों पर प्रज्ञप्ति, बज्रांकुशी, अच्छुप्ता एवं हामानसी महाविद्याओं की मूर्तियां उत्कर्ण हैं ।
उत्तरप्रदेश - मध्यप्रदेश :
इस क्षेत्र में दोनों वर्गों की चौमुखो मूर्तियां निर्मित हुई । पर दूसरे वर्ग की मूर्तियों की संख्या अधिक है | प्रथम वर्ग को ल० आठवीं शती ई० की एक मूर्ति भारत कला भवन, वाराणसी (७७) में है (चित्र - ४) । सभी जिन निर्वस्त्र हैं और कायोत्सर्ग में साधारण पीठिका पर खड़े हैं। जिनों के लांछन उत्कीर्ण नहीं हैं । प्रत्येक जिन की पीठिका पर दो ध्यानस्थ जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। कौशांत्रो से मिली एक मूर्ति (१० वीं शती ई०) इलाहाबाद संग्रहालय (ए० एम० ९४३) में है। लांछन विहीन चारों जिन मूर्तियाँ कायोत्सर्ग में खड़ी हैं। समान विवरणों वाली दो अन्य मूर्तियां क्रमशः ग्वालियर एवं मथुरा (१५२९) संग्रहालयों में. सुरक्षित हैं। कंकाली टीला, मथुरा से मिली और राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे - २३.६) में सुरक्षित १०२३ ई० की एक मूर्ति में ध्यानमुद्रा में चार जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । जिनों के लांछन नहीं प्रदर्शित हैं। पर पीठिका लेख में इसे वर्धमान ( महावीर ) का चतुर्भित्र बताया गया है । मूर्ति का शीर्षभाग मन्दिर के शिखर के रूप में निर्मित है । प्रत्येक जिन सिंहासन, धर्मचक्र, त्रिछत्र एवं वृक्ष की पत्तियों से युक्त हैं बटेश्वर (आगरा) से मिली एक मूर्ति (११ वीं शती ई०) राज्य संग्रहालय, लखनऊ में है । लांछन रहित जिन ध्यानमुद्रा में विराजमान है । प्रत्येक जिन के साथ सिंहासन, भामण्डल, त्रिछत्र, दुन्दुभिव:दक, उड्डीयमान मालाधर एवं उपासक आमूर्तित हैं । देवगढ़ से इस वर्ग की पांच मूर्तियां मिलो हैं । २४ सभी उदाहरणों में लांछन विहीन जिन मूर्तियां कायोत्सर्ग में उत्कीर्ण हैं ।
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