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Review
साधना की, कोई गुरु
जंचता । वे अपना अधिक समय ध्यान में ही बिताते थे ऐसी स्थितिमें वाचना और प्रतिपृच्छना जैसे कार्य वे करते हों इसमें संदेह है । जब अकेले ही नहीं ऐसी स्थिति में यह वाचना आदिका प्रश्न ही नहीं ऊठता इन सबके होते हुए भी भगवान् महावोर की यह जोवनी दृष्टि से लिखने का आदरणीय प्रयास है इसमें संदेह नहीं ।
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जैनधर्म के प्रभावक आचार्य - लेखिका - साध्वी संघमित्रा, प्रकाशक- जैन विश्व भारती, लाडनूं, मूल्य २५ रुपये, ई. १९७९ ।
आगमयुग, उत्कर्षयुग और नवीनयुग- इस तीन युगों का विवरण देकर उन युगों में होने वाले प्रभावक आचार्यों का जीवन साध्वी श्री संघमित्राजी ने देनेका प्रयास किया है । आगम युग के सुधर्मा से लेकर देवर्षिगण तक का, उत्कर्ष युग के आचार्य वृद्धवादी से गुणरत्नसूर तक का और नवीन युगके आ. हीरविजयजी से लेकर आचार्य तुलसी तक के आचार्यों का जीवन इस ग्रन्थ में लिखनेका प्रयास है ।
आदेय है और इतिहास -
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- दलसुख मालवणिया
इस ग्रन्थ की प्रथम विशेषता यह है कि इसमें जैन धर्म के सभी संप्रदायों के मान्य आचार्यों की जो भी इतिहास और अर्ध इतिहास की सामग्री मिलती है उसका उपयोग करके तत्तत् आचार्यो की जीवनी लिखी गईं है । लेखिकाने आचार्यों के प्रति आदरशील होकर लिखा है ।
प्रायः ऐसे ग्रन्थों में सांप्रदायिक दृष्टि देखी जाती हैं । इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि इसमें संप्रदाय को नहीं किन्तु जैन प्रभावक आचार्यों को महत्त्वका स्थान दिया गया है । आशा है कि जैन संघ के इतिहास की जिज्ञासा रखने वालों के और उपादेय होगा ।
लिए यह ग्रन्थ आदरणीय
- दलसुख मालवणिया
आपणा फागु काव्यो, ले० रमणलाल ची. शाह, परिचय पुस्तिका नं. ४९४, परिचय ट्रस्ट, बंबई, मूल्य०० =७५,१९७९ ।
३२ पृष्ठ की इस छोटी सी पुस्तिका में फागुकाव्यों के विषय में डो. रमणलाल शाहने पूरी जानकारा गुजराती भाषा में संक्षेप में देदी है । विशेषता यह है कि आज तक के ज्ञात फागुआं को विषय विभाग करके परिचय दिया है । - दलसुख मालवणिया
श्रावक धर्म दर्शन, प्रवचनकार श्री पुष्कर मुनि, संपादक श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री, प्र० तारकगुरु जैन ग्रन्थमाला, उदयपुर, ई० १९७८, मूल्य, पैतीस रुपये ।
इस ग्रन्थ की भूमिका में विद्वान संपादकने आगम साहित्य में श्रावक धर्मके विषय में जो निर्देश मिलते हैं, उनका विवरण देकर श्वेताम्बर और दिगम्बर आचार्यों ने श्रावक धर्म के विषय में जो साहित्य लिखा है उसका परिचय दिया है । उसके बाद ग्रन्थ में उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि द्वारा दिये गये प्रवचनों के आधार पर विषय का संकलन किया है । व्रत और श्रावकों के व्रतों के विषय में यह ग्रन्थ विश्वकोष के रूप में लिखा गया है। श्रावक के व्रतों के विषय की कोई चर्चा इसमें न मिले यह संभव नहीं । प्रतिपादन में अनेक दृष्टांतकथाओं के कारण ग्रन्थ रोचक तो है ही साथ ही प्रत्येक व्रत की सूक्ष्म चर्चा भी सैद्धान्तिक रूप में की गई है । ग्रन्थ संशोधन करनेवाले विद्वानों और आचरण में रस रखनेवाले मुमुक्षु दोनों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा ।
- दलसुख मालवणिया
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