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स्वाध्याय
अनेक वर्षोना संशोधनने परिणामे कच्छ प्रदेशना सांस्कृतिक इतिहासनी भूमिका साथे ते प्रदेशना सुप्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ भद्रेश्वरनो आ इतिहास ग्रन्थ छे. इतिहासनी सामग्रीने कलात्मक रीते रजु करवानी लेखकनी कुशळता पाने पाने वरताई आवे छे. अनेक लोक वायकाओने तथा शिलालेख आदि अन्य सामग्रीने पूरी इतिहासदृष्टिथी चकासीने आमां सत्य तारववानो इतिहासकारने शोभे ए रीते प्रयत्न थयो छे. सत्यशोधक अने भाविक भक्तो बन्नेने माटे योग्य आ पुस्तक लखायुं छे. अने तीर्थोना इतिहासनु लखाण केतुं होय तो सर्वग्राह्य बने तेनो सारो एवो जमुनो पूरो पाडे छे. पुस्तक अनेक चित्रोथी सुसजित करी - तेनी 'उपयोगितामा वधारो कर्यो छे. भद्रेश्वर उपरांत कच्छना बीजां पण नाना मोटा तीर्थोनो परिचय आपवामां आव्यो छे. केवळ जैनों ज नहीं पण कच्छ अने तीर्थंनी संस्कृतिना रसिया-ने आ पुस्तक गमी जाय तेवु छे.
दलसुख मालवणिया मुणिचंद कहाण - सं. डॉ. के आर. चन्द्र, जयभारत प्रकाशन, अहमदाबाद, द्वितीय आवृत्ति, १९७७ मू० ६ ) |
डॉ. चन्द्रने इस कथा का सम्पादन - चउप्पन्नमहापुरिसचरियं जो प्राकृत परिषद् ग्रन्थमाला में प्रकाशित हैं— उसके आधार पर किया है । प्रस्तावना में सम्पादक ने प्राकृत भाषा, प्राकृत साहित्य का संक्षिप्त परिचय देकर कथानक के विषय में समालोचन तो किया ही है। साथ ही छात्रोपयोगी गुजराती अनुवाद भी और शब्दसूची भी दिये हैं । यह पाठ्यपुस्तक है और उसमें जो लम्बा शुद्धिपत्रक दिया है वह खटकता है । दलसुख मालवणिया चैतन्यानुभूति, सं. अने अनुवादक - ए. आर. बक्षी, प्रकाशक - दामोदर मावलंकर, शाखा (लोज) नवरंगपुरा, अहमदाबाद - ९, १९७७, मूल्य नथी जणान्युं ।
क्षेमराजकृत 'प्रत्यभिज्ञाहृदय' ना वीस सूत्रोनी व्याख्या आमां आपवामां आवी छे. जीव शिव नु ऐक्य केम प्राप्त थाय ते विषेनी समज लेखके ए सूत्रोंनी टीकाओने आधारे स्पष्ट रूपे आमां संक्षेपमां पण सरळ रीते आपी छे । दलसुख मालवणिया अध्यात्म - अमृत कलश, टीकाकार- पं. जगन्मोहन लाल सिद्धान्तशास्त्री, संपादक - कैलाश चन्द्र सिद्वान्तशास्त्री, प्रकाशक - श्रीचन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मन्दिर, कटनी, ई. १९७७ रुपया १० ) ।
आचार्य कुन्दकुन्द कृत समयसार की टीका गद्य में आ० अमृतचन्द्र ने लिखी ही है साथ ही पद्य में उन्होंने उक्त ग्रन्थ का सार भी लिख दिया है । वे पद्य समयसारकलश के नाम से प्रसिद्ध हैं । उन्हीं पद्यों को संग्रह करके प्रस्तुत में पं. जगन्मोहन लालजी ने हिन्दी में टीका लिखी है और उस विषय में प्रवचन भी दिये है । उसी का सम्पादन करके इस ग्रन्थ में पं० कैलाशचन्द्र जी ने मुद्रित करवा दिया है । टीका की विशेषता यह है कि आधुनिककाल में व्यवहार और निश्चय को लेकर जो विवाद समाज में खड़ा हुआ है उस विवाद को सुलझाने की दृष्टि से यहां विवेचन किया गया है। आचार्य अमृतचन्द्र को जो अभिप्रेत था उसी का समर्थन यहाँ किया गया है। आधुनिक विवाद के प्रश्नों को प्रश्नोत्तरी के द्वारा पंडितजी ने उचित रूपसे सुलझाने का प्रयत्न किया है ।
द्वारा हुआ है- यह एक अच्छी प्रवृत्ति है और श्वेताम्बर समुदाय में भी देव द्रव्य के करते हैं कि श्वेताम्बर भी देव द्रव्य
दलसुख मालवणिया
इस ग्रन्थ का प्रकाशन देव द्रव्य के उसका समर्थन पं० श्री कैलाशचन्द्र जी ने किया है। उपयोग के विषय में विवाद चला आ रहा है आशा का उपयोग ज्ञान के प्रकाशन में करेंगे ।
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