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। स्वाध्याय ) जैन न्याय का विकास-मुनि नथमल, जैन विद्या अनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्व विद्यालय, जयपुर, ई. १९७७, मूल्य २००० ।
मुनि श्री नथमलजीने राजस्थान विश्व विद्यालय में जैन विद्या अनुशीलन केन्द्र में जो जैन न्याय के विषय में व्याख्यान दिये वे यहाँ संकलित हैं। संपादन मुनिश्री दुलहराजने किया है। जैन न्याय के विषय में संक्षेप में आवश्यक पूरी सामग्री इन व्याख्यानों में दी गई हैं । स्वतंत्र विचारक के रूप में भी मुनिश्री ने अपने विचार इसमें दिये हैं । उपरांत पुस्तक के अंत में जैन दार्शनिकों की सूचि संक्षिप्त परिचय के साथ दी हुई है । उपरांत शब्द सूची भी है । विषय निरूपण में खटकनेवाली बात यह है कि आगमयुग' के जैन न्याय की चर्चा में जो भगवती आदि के अवतरण होने चाहिए उनका उपयोग दर्शनयुग के जैन न्याय में किया गया है । और ऐसी भी चर्चा आगमयुग के जैन दर्शन में की है जो वस्तुतः दर्शन युग की है। इस दृष्टि से दार्शनिक विकास की प्रक्रिया उचित रूप में वाचक से समक्ष आती नहीं । व्याख्याता की विचारणा की मौलिकता और स्पष्टता प्रशंसायोग्य है । और विषय का प्रतिपादन जैनन्याय की जानकारी देने में पूरी क्षमता रखता है । संक्षेप में जैनन्याय के सभी विषयों की चर्चा १३१ पृष्ठों में करना आसान नहीं है, किन्तु इसमें व्याख्याता सफल हुए हैं और जैनदर्शन जानने का यह एक अच्छा साधन उपस्थित हुआ है । इसके लिए व्याख्याता और राजस्थान विश्वविद्यालय धन्यवादाई हैं ।
दळसुख मालवणिया तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलालजी कृत विवेचन, गूजरात विद्यापीठ, अमदावाद, चतुर्थ आवृत्ति, ई. १९७७, मू. २०००
पं. सुखलाल जी कृत तत्त्वार्थ का गुजराती विवेचन कई वर्षों से समाप्त था । अतएव यह उसकी चोथी आवृत्ति विद्यापीठ ने प्रकाशित कर दी है। इसमें तत्त्वार्थ की हिन्दी की दूसरी आवृत्ति में जो नई बात बढाई गई थी उसका तथा कुमारी सुजूको ओहिराने तत्त्वार्थ सूत्र के मूल पाठ के विषय में जो लेख लिखा था उसका गुजराती अनुवाद भी दे दिया गया है।
दलसुख मालवणिया तत्त्वार्थसूत्र पं. सुखलाल जी कृत हिन्दी में विवेचन, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी ५, ई. १९७६, म्० १०=०० ।
तत्त्वार्थ के हिन्दी विवेचन की यह तीसरी आवृत्ति है। इसमें भी कुमारी आहिरा के लेखका हिन्दी अनुवाद मुद्रित है
दलसुख मालवणिया आयारंगसुत्तं सं• मुनि जम्बू विजय, श्री महावीर जैन विद्यालय, बंबई ई. १९७७, मू०४०%200