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संघपति खीमचंद रास
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उत्सव किए । रतनपुर में शांतिनाथ और जीराउल में पार्श्वनाथ भगवान के महाध्वजारोप कर रखीमचंद संघपति अनेक दुखियों का कष्ट निवारण करते हुए आबू गिरि पर पहुंचे । वहाँ देवलवाड़ में विमल दण्डनायक के विहार में ऋषभदेव, लूणग-वसही में नेमिनाथ और झाझण-विहार में पित्तलमय आदीश्वर भगवान की यात्रा की । मन्दिर के आगे विमल अश्वारूढ़ है तथा दोनों मंदिरों की जगती में देवकुलिकाओं की पूजा की, श्री माता, विऋषि का निरीक्षण किया, डुंगर के विवर में अर्बुद देवी की अर्चा करके पूजा, ध्वजारोह और इन्द्रमहोत्सव आदि नाना उत्सव करके संघपति खीमचंदने १ श्रीपाल २ पर्वत ३ बोहिथ और ४ भीमसिंह को संघ के महाघर स्थापित किए । भंडारी पोपउ, जिणियउ, सिलहस्थ और पारस को संघ के पच्छेवाणु ( पृष्ठरक्षक) बनाए । अचलेश्वर, वशिष्ट, मन्दाकिनी आदि स्थानों का अवलोकन कर संघ ने रैवतगिरि की ओर प्रयाण किया ।
धवली में वीरप्रभु, बीजोय में शान्तिनाथ, कोली, वरकुलि, श्रीराउद्द, सिवराण, तिरिवाज, क्रमशः जाकर संघने चार जिनालयों को भक्ति पूर्वक वंदन किया । संवाडा में कुमारविहार स्थित पार्श्वनाथ को वंदन कर, नेमिनाथप्रभु के दर्शनों की प्रबल भावना से संघ अग्रसर होकर वज्जाणा, वढवाण, जाकर शांतिनाथ व वर्द्धमान तथा साहेलय (सायला ) में वीर नमन कर सिघर आये । खीमचंद संघपति ने यहाँ मेघ को वलावु लिया । जूनागढ़ पहुंचकर संघपति ने दक्षिण कर से हेम वृष्टि की । राणा महीपाल से भेंट कर सम्मानित हुआ । रैवतगिरि की पाज चढकर नेमिनाथ प्रभु के वज्रमय बिम्ब के प्रणाम किया । और गजेन्द्रपद कुंड में स्नान किया । तीनों कल्याणक स्थानों में जिनेश्वर बिम्बों को नमन कर, शत्रुञ्जयावतार मंदिर में आदिनाथ, मरुदेवी, कवड़यक्ष का वन्दन कर, राजुल - रहनेमि गुफा, अभ्चाशिखर, अवलोयण शिखर जाते, शाम्ब - प्रद्युम्न शिखर की यात्रा कर नेमिजिनगृह आये । महाध्वजारोपण, दान-पुन्य, अवारित सत्र, रास भास नृत्यादि भक्ति कर वापस जूनागढ आये । फिर मंगलउर में नवपल्लव पार्श्वनाथ, दर्शन कर दीव देवपट्टण ( देवका पाटण ) में चंद्रप्रभ को नमन कर, कोडीनार में अंबिका बंदर, ऊना आये। घृतकल्लोल, महुआ, ताराझय ( तलाजा ) और घोघा में नवखण्ड पार्श्वनाथ, ककर वालूंकड में ॠषमदेव - महावीर को वंदन करके संघ पालीताना पहुँचा ।
महातीर्थ शत्रुंजय गिरिराज पर चढ़ते प्रथम नेमिनाथ प्रभु के दर्शन कर मइंगल (हाथी) - आरोहित मरूदेवी माता को बंदनकर, अजित-शांति, अदबुद आदीश्वर, कवड़ यक्ष को बधाया । फिर अनुपम सरोवर के जल कलश भर के पउलि प्रवेश किया । भक्ति-सिक्त हर्षाश्रुपूर्ण नयनों से तिलख तोरण और पाउड़िआलइ आरोहणकर जगत्पति जिनेश्वर आदिनाथ के दर्शन किए, | पुष्पमाला और कृष्णागरु संघपति खीमचंद ने कुंकुम चंदन कस्तूरी से भावपूर्वक पूजा अर्पण कर जिन भक्ति की रायण रूख को बधाया । अवारित सत्र देकर ध्वाजारोप किया और विदा होते समय स्वर्ण-वृष्टिद्वारा याचकों को संतुष्ट किया । फिर ललतासर के तट पर आये । पालीताना से वलही होते हुए धंधूका आकर वीर प्रभु की स्तवना की । झझवाडा, नागावाड़ा होते हुए क्रमशः छडिहि शीघ्र प्रयाण द्वारा भटनेर आये । घर घर में बंदरवाल मोतियों से चौक पूरा गया, पुण्यकलश लेकर गीत गाते हुए वाजित्रों के साथ संघपति का स्वागत हुआ । राय हमीर को संघपति ने पहरावणी दी । सर्वत्र हर्ष हुआ, लोढा कुल को उद्योत करने वाला संघपति खीमचंद शासनदेवी के सानिध्य से चिरकाल जयवंत रहे ।
सजाए,