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आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि-अभिनन्दन ग्रन्थ : (जन विद्या एवं प्राकृत भाषा का ज्ञानकोष) : संपादक मंडल, श्री विजयमुनि आदि, प्र० श्री महाराष्ट्र स्थानकवासी जैन संघ, साधनासदन, नानापेठ, पूना-२, १९७५, मू० चालीस रूपये इसमें आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी के जीवन सबंधी लेखों के उपरांत उनके उपदेशो का भी सग्रह किया गया है तथा धर्म और दर्शन, प्राकृत भाषा और साहित्य, तथा इतिहास और संस्कृति-इन विभागों में विविध लेखकों के लेख मुद्रित हैं।
अष्टसहस्त्री : ( विद्यानन्द कृत) का श्री आर्यिका ज्ञानमती कृत हिन्दी अनुवाद प्रथम भाग, प्र० दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर, पृ० ४४७-१२० मू० रु ५१.
इसमें समंतभद्रकृत आतमीमासा की प्रथम छः कारिकाओंकी टीका अष्टसहस्री हिन्दी अनुवाद के साथ मुद्रित है। इस कठिन ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद उपस्थित करके आर्या श्री ज्ञानमतीजी ने अध्येताओंका उपकार किया है। साथ ही परिशिष्ट में 'न्यायसार' इस नाम के ग्रन्थ में आर्यिकाजी ने पूर्वाचार्यों के मन्तव्यों का सक्षेपमें उद्धरण करके जैन न्याय को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है जो जैनन्यायमें प्रवेशार्थी के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा ।
Prašnavyakaranasūtra : Translation and Commentary in Hindi by Pt. Shri Hemacandra]], Edited by Pt. Amaramunaji, Pub. Sanmatu Jianapitha, Agra. pp. 891, 1973, Rs. 25-. An exhaustive Commentary on Asrava and Samvara theory of the text is the main feature of this book.
Vadasamgraha of Srimad Yasovijaya Upadhyaya, Pub. Bharatiya Pracya Tattvaprakabana Samiti, Pindwada, Vs. 2031, pp. 144, Rs 10/-. In this book following Sanskrit texts are included-Kupadsstäntavisadıkarana, Vadamala ( included in this are-Svatvavada and Sannikarsavada), Visayatayxda, Vayusmadeh pratyakazpratyaksatvavivædarahasyam, and Vadamala ( Included in this are-Vastulaksana, Samanyavada, Visesavada, Vagadinamindriyatvanirakaranavada, Atiriktasaktivada and Adygtasiddhi,
King Bimbisara and king Ajatašatru . Dr. Muni Nagaraj, Tr. from Hindi by Muni Mahendra Kumara, pub. Jaina Visva Bharatı, Ladoun (Ran. 1974, pp. 90 Rs. 7/-. In this monograph Dr. Muni Nagarajajl has discussed the relation of these two kings with Mahavira and Buddha
संस्कृत काव्य प्रतिभा: Ed. by Dr. Narayan Kansara, Pub. Gujarat College, Ahmedabad 1975. pp. 56. This is a collection of the selected Kavyas written by the students of the College during the last sixty years in their college magazine
-Dalsukh Malvania