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मोक्षधर्मप्रकरण की दार्शनिक चर्चा दी जाए तो मोक्षधर्मप्रकरण का विभाजन सीधा और समझ में आने वाला है, सांख्यकारिका का विभाजन जटिल और दुरूह । क्योंकि मोक्षधर्मप्रकरण में कहा जा रहा है कि कैसे आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी इन पांच महाभूतों से शब्द, स्पर्श, रूप, रस गंध इन पांच मूल भौतिक गुणों की उत्पत्ति होती है जबकि सांख्यकारिका में कहा जा रहा कि कैसे शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, इन पांच तन्मात्रों से आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी, इन पांच महाभूतों की उत्पत्ति होती है और स्पष्ट ही इनमें से पहला कथन दूसरे की अपेक्षा कहीं अधिक समझदारी है । वस्तुतः सांख्यकारिका का शब्द-तन्मात्र आदि से ठीक आशय क्या है यह समझना सरल नहीं । प्रश्न उठता है कि यदि सांख्यकारिका जैसा जड़ तत्त्वों का विभाजन मूल सांख्य-दार्शनिकों को भी अभीष्ट रहा हो तो मोक्षधर्मप्रकरण में उसकी सर्वथा उपेक्षा क्यों और उसके स्थान पर एक ऐसा विभाजन स्वीकार क्यों जो उससे अंशतः सदृश तथा अंशतः भिन्न है। यह सच है कि मोक्षधर्मप्रकरण में सांख्य दर्शन की अनेकों मान्यताओं का उल्लेस्त भ्रान्ति भरा है जिसे यह कहकर नहीं टाला जा सकता कि सांख्यदर्शन ने इन मान्यताओं को विभिन्न कालों में विभिन्न रूपों में स्वीकार किया होगा । और आत्मा के प्रश्न पर तो हम देख ही चुके है कि मोक्षधर्मप्रकरण की एतद् सम्बन्धी मान्यता मूल सांख्य दर्शन की एतद् सम्बन्धी मान्यता से तत्त्वतः भिन्न है (यहां भी कठिनाई को यह कहकर नहीं टाला जा सकता कि मूल सांख्य दार्शनिकों का मत मोक्षधर्मप्रकरण के मत से तत्त्वतः अभिन्न रहा होगा लेकिन जङ-तत्त्वों के विभाजन के संबन्ध में सचमुच यही लगता है कि सांख्यकारिका में किसी उत्तरकालीन परम्परा ने स्थान पाया है जो किन्हीं ऐसे धुंधले कारणों से स्वीकार की गई थी जिनका अनुमान लगाना हमारे लिए आज संभव नहीं । अन्त में मोक्षधर्मप्रकरण के दार्शनिक चर्चावाले स्थलों में विशेष ध्यान देने योग्य वे हैं जिनमें शरीर के भीतर चलने वाली प्रक्रियाओं का - अर्थात् श्वासोच्छवास, पाचन, रक्तपरिभ्रमण, आदि का--न्यूनाधिक सूक्ष्म निरीक्षण पर आधारित वर्णन है (यह विशेषतः इसलिए कि इस प्रकार के निरीक्षण पर आधारित इस प्रकार के वर्णन उत्तरकालोन दार्शनिक चर्चाओं में प्रायः दुर्लभ है)।
___ इस प्रकार मोक्षधर्मप्रकरण के दार्शनिक चर्चाओं वाले भाग अपने युग के दार्शनिक रंगमंच के एक महत्त्वपूर्ण पार्श्व पर वाञ्छनीय प्रकाश डालते हैंअपनी अपरिपक्वता तथा अपनी सांप्रदायिकता के बावजूद ।