SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षधर्मप्रकरण की दार्शनिक चर्चा कृष्णकुमार दीक्षित महाभारत के शान्तिपर्वगत कतिपय अध्यायों की राशि को 'मोक्षधर्म प्रकरण' के नाम से जाना जाता है । इन अध्यायों ने शान्तिपर्व का अन्तिम प्रायः दो तिहाई भाग घेरा है (गीता प्रेस के संस्करण में इन अध्यायों की क्रम संख्या है १७४ से ३६५ तक, पूजा - संस्करण में १६८ से ३५३ तक) उनकी विषय वस्तु का सम्बन्ध तीन प्रकार की चर्चाओं से है। ( १ ) तत्वज्ञान विषयक चर्चाएं (२) योगाभ्यास विषयक चर्चाएं (३) मोक्षमार्गभूत आचार विषयक चर्चाएं PN ये तीनों प्रकार की चर्चाएँ एक दूसरे से इस प्रकार गुंथी हुई हैं कि उन्हें एक दूसरे से पृथक् करना थोडा कठिन है । यह इसलिए कि ग्रंथकार की दृष्टि में ये तीनों प्रकार की चर्चाएं एक दूसरे से अविभाज्य रूप से जुड़ी हुई हैं । लेकिन दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों को प्रस्तुत प्रकरण की तत्त्वज्ञान विषयक चर्चाओं पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा क्योंकि इन्हीं चर्चाओं का सीधा संबन्ध उनके अपने अध्ययन विषय से है । ये चर्चाएं शैली तथा विषयवस्तु दोनों की दृष्टि से कुछ ऐसी विशेषताओं से सम्पन्न हैं जो भारतीय दर्शन के इतिहास पर महत्व का प्रकाश डालती हैं और हमें इन विशेषताओं का लेखा लेना है । महाभारत की रचना एक ऐसे पाठक को ध्यान में रखकर हुई है जो ब्राह्मण - परम्परा का अनुयायी है तथा सामान्यतः शिक्षित है । यही कारण है कि इसकी प्रायः चर्चाएं एक ऐसे पाठक को अप्रभावित छोड़ देती हैं जो या तो किसी अब्राह्मण परंपरा का अनुयायी है या अपने अध्ययन विषय में विशेष शिक्षित है । यही बात हमारे प्रस्तुत प्रकरण की तत्त्वज्ञान विषयक चर्चाओं पर भी लागू होती है । निःसंदेह यहां तत्त्वज्ञान से सम्बन्धित प्रश्नों पर ऊहापोह किया गया है लेकिन वह ऊहापोह तत्त्वज्ञान के विशेष अभ्यासियों को छिछला प्रतीत होगा, और यहां ब्राह्मण परम्परा की कतिपय धार्मिक आस्थाओं को इस प्रकार स्वीकार करके चला गया है कि वे अन्य धार्मिक परम्पराओं के अनुयायियों का ग्रन्थ में प्रवेश ही असंभव बना देंगी । इनके बावजूद इन चर्चाओं का महत्त्व भारतीय दर्शन के एक विशिष्ट तथा ब्राह्मणेतर अभ्यासी के निकट भी कम नहीं । बात यह है कि ये चर्चाएं उस युग में हुई चर्चाएं हैं जिस युग में रचित विशिष्ट दार्शनिक साहित्य अर्थात् ब्राह्मण परम्परा का विशिष्ट दार्शनिक साहित्य आज हमें उपलब्ध नहीं । इस युग के पूर्वोत्तरकाल पर दृष्टि डालने पर यह तो कहा
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy