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________________ न्यायविशारद महामहोपाध्याय श्रीमद्यशोविजयगणि विरचित सिद्धनामकोश संपादक पं. अमृतलाल मोहनलाल भोजक महोपाध्याय श्री यशोविजयकृत अनेक ग्रन्थो अप्राप्य छे. तेमा आ 'सिद्धनामकोश' उपलब्ध थयो छे. अने तेने अहों बे प्रतिओना आधारे सर्व प्रथम संपादित कर्यो छे. १. ज० संज्ञक प्रति-- आर्य श्री जम्बूस्वामि जैन मुक्ताबाई आगममन्दिरसत्क पू० आचार्य श्री विजयरैवतसूरिसंगृहीत पूज्यपाद आचार्य श्री विजयजम्बूसूरि हस्तलिखित चिद्रंजनकोश डभोई (गुजरात) मां प्रस्तुत सिद्धनामकोश नी प्रति सुरक्षित छे. पत्र संख्या ६ छे. प्रत्येक पृष्ठिमां १५ पंक्ति छे. छठा पत्रनी पहेली पृष्ठिनी आठमी पंक्तिमा सिद्धनामकोश पूर्ण थाय छे. प्रत्येक पंक्तिमा ४४ अथवा ४५ अक्षर छे. कोईक पंक्तिमा ४८ अक्षर पण छे. प्रत्येक पृष्ठिनी छहीथो दसमी पंक्तिना मध्य भागमा लेखके अक्षर लख्या विना कोरो भाग राखीने शोभन (रिक्ताक्षरशोभन) बनाव्युं छे. ते आ प्रमाणे-छठीथी दसमी पंक्तिना मध्यभागमां अनुक्रमे ३-६-९-६-३ अक्षर जेटलो कोरो भाग छे. प्रत्येक पत्रनी बीजी पूंठीनी जमणी बाजुना (जोनारनी) हांसिया (मार्जीन) ना नीचेना भागमां ते ते पत्रनो क्रमांक लख्यो छे. अने डाबी बाजुना हांसियाना उपरना भागमा 'सिद्धनाम' लखीने आ कृतिनुं नाम सूचव्यु छे अने तेनी नीचे ते ते पत्रना क्रमांक लख्यो छे. प्रत्येक पृष्ठनी उपर नीचेनो अ? इंच भाग कोरो राख्यो छे. अने बाजू एक एक इंच कोरी छे अर्थात् प्रत्येक पृष्ठिमां ८१४३१. इंच लम्बाई पहोळाईमां आ कोश लखायेलो छे. प्रत्येक पृष्ठिनी प्रत्येक पंक्तिना आरम्भ अने अन्तने आवरीने ऊभी बे लाल लीटीओ दोरेली छे अने प्रत्येक पृष्ठिना बन्ने छेडे ऊभी एक लाल लीटी दोरेली छे. लम्बाई पहोळाई ९१४४१ इंच प्रमाण छे. अन्तमां "लिखित राजनगरे सं० १७३९ वर्षे इति श्रेयः" आ प्रमाणे टूकी पुष्पिका छे. कर्ताना सत्तासमयमां आ प्रति लखायेली छे. 'सिद्धनामकोश' नी साद्यन्त-संपूर्ण वाचना आ प्रतिथी ज उपलब्ध छे ए दृष्टिए आ प्रतिनुं महत्त्व अतिघणुं छे. २ य० संज्ञक प्रति-अहीं उपर जणावेली प्रति मळयानी जाण में प० पू० पं० श्री यशोविजयजी महाराजने (मुम्बई) करी. अने 'सिद्धनामकोश' संपादित करीने 'संबोधि' त्रिमासिकमां प्रकाशित करी रह्यो छु, एम पण में जणाव्यु. तेओश्रीए विना विलंबे तेमने पण प्राप्त थयेली . 'सिद्धनामकोश नी प्रतिनी मने जाण करी. उपरांत जणाव्यु के तेमने प्राप्त थयेली प्रतिनु प्रथम पत्र नथी. आम छतां तेटलो भाग जतो करीने पण तेओ तेनु सम्पादन प्रकाशन करवानी तैयारोमा हता तेवे वखते में तेओश्रीने सम्पूर्ण प्रति मळयानी जाण करी. अने तेमनी पासेनी प्रतिनो उपयोग करवा माटे विनंति करी. आथी अतिप्रसन्न भावे तेमणे तेमनी पासेनी प्रतिनी फोटोस्टेट कॉपी कढ़ावीने मने मोकलावी. आ फोटोकॉपीने जोतां ज में अन्तःप्रमोद पूर्वक धन्यता अनुभवी. आ प्रति पूज्यपाद महोपाध्यायजी श्रीयशोविजयजी महाराजना स्वहस्ते लखायेली छे. श्रीयशोविजयजी महाराजे पोतानी अनेक रचनाओ स्वहस्ते लखेलो छे, अने अन्त मां लेखक तरीके पोताना नामनो उल्लेख प्रायः करता नथी. आ प्रमाणे प्रस्तुत सिद्धनामकोशना अन्तमां पण तेमणे लेखक तरीके पोतानु' नाम नथी लख्यु'. आम छतां तेमणे स्वहस्ताक्षररूपे ज्यां पोतानु नाम लत्यु छे तेवी प्रतिओना आधारे पूज्यपाद आगमप्रभा कर मुनिवर्य
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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