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________________ 智電 अह मज्जण मंडण - विरयणाहिं बहु वावडं तहिं अम्मं । उवगय त्ति ।। ४०४ वावी - तडोववि दट्ठूण अहं अवेय-बिंदु अंजण-सेस- अरुण नयण - उब्विग्गं । दट्ठूण निप्पभ्रं मे पभाय चंदोवमं वयणं ॥ ४०५ अम्मा भइ विसण्णा किं पुत्ताराम - हिंडण - समेण । जाया सि विगय- सोभा उप्पल-माला मिलाय व्व ॥ ४०६ पिय-विप्प ओग - दुक्खाइमा अहं सज्जाण (?) विगय-सच्चा । अम्मं जल-भरियच्छी भणामि दुक्खेइ मे सीसं ॥ ४०७ तो पुत्त जाहि नयरिं न समत्था हं पयं पि दाउ जे । दुक्खस्स जो निहाणं जरो य तुरियं अभिलसेत्ति (?) ।। ४०८ सुवर्ण-विसण्णा वच्छला महं माया । ४१० भाइ य निव्वुया तं पुत्तय जह होसि तह होउ ॥ ४०९ अहमविनयरिमयंती कहें तुमं दुक्खियं विभुंचामि । एणो (?) जत्थायत्ता कुलरस सव्वरस मे बाला इय भाणिऊणं अम्मा धूय - सिणेहाणुराग-रत्ता य । सयणिज्ज -पवहणं में जोत्तावेइ पवरं (?) जाणं ॥ ४११ बेइ यता महिलाओ सव्वा मज्जिय-पसाहिया जिमिया । एज्जाह देह काले अहयं नयरिं गमिस्सामि ॥ ४१२ किंचि मह कायव्वं तुरियं होह य निरुस्सुया तुभे । एवं अणिदियत्थं ताओ समयं अहिकहेइ || ४१३ विल्या - जणस्स विग्घो मा होही उववणम्मि पव्वे । तो नयर - पवेसण - कारणं पि अम्मा न साहेइ ॥ ४१४ आरक्खिय- महयरए वरिसधरे तव्थ वावडे पुरिसे । काऊ ससंदे (?) सब्वे निययाहिगारेसु ॥४१५ अप्प - परिवार - सहिया समं मए कुसल परियण-समग्गा । जाणेण तेण तुरियं अह नयरिं उवगया अम्मा ॥४१६ भवणवरं सीसतुलि संजुत्ते तत्थ (2) भिमर्दमि निसण्णा(?) कयमुत्ताहारउद्घाणं ॥ ४१७ तरंगला चित्तूर्ण कंठहारो नियन्त्तं विवाउ तह य कंविण्णय ( ? ) 1. कण्णाण कुंडल - जुयं देसी य करंडए तविया ( 2 ) ॥ ४१८. अम्माए तओ भणियं तरंगवइयाए अंग-मोडो स्थि । . नय से सीसं सत्थं न य इच्छइ अच्छिउ तत्थ ॥ ४१९ जस्स कएण गया हूं उज्जाणं सरसी-समीव- जाउ ति । सो सत्तिवण्ण-रुक्खो दिट्ठो कुसुमेहि संछण्णो ॥ ४२०
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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