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अशात-कर्तृक
अज्ज वि पहु तरुणउ जुवणत्थु काम-ऽत्थ -भोग-मुंजण-समत्थु । सामन्नु एहु किम वहसि अज्ज तरुणत्तणि अइ दुक्कर पवज्ज । महु कहहि सयलु निय-चरिउ एहु किम मुक्क दारु धण सयण गेहु । .. पत्ता ..
. मुणि रायह आगई। कहइ समग्गइ निय-वित्तंतु सुमहुरे-झुणि । कारण सामन्नहं भव-निव्विन्नहं निसुणहि नरवर एग-मणि ॥२॥
हउँ अणाहो य नवि नाह मह कु वि जए।
कुणवि अणुकंप अह सरणु पडिवज्जए । हसवि वयणं च पभणेइ मगहाहियो । - एस तुह इढेिमंतस्स नवि नाहओ ॥ होमि हां नाह तुह विलसि सुह-संपया ।
पंचविह विसय मणहरण सह-भज्जया ।। देमि तव रज्जु पासाय हय गय भडा ।
सेज वर तूल तंबोल रस विच्छडा ॥ पढम अप्पणु अणाहोसि तुहु नरवरा ।
नाहु किम होसि अवरहं पुहवीसरा ॥ भणिउ रिसि एव जा सेणिउ वयणयं ।
चित्ति संभंतु पडिभणइ भिन्न हियं ॥ वयणु सुणि नाह तुह एहु अपुव्वयं । ' भणिसि जं मं अणाहो य सुह संपयं ॥ मज्ज हय हत्थि रह जोह पुहई धणं ।
दास दासी य वर कामिणी परियणं ॥ आणवडिओ य वट्टेइ मह परियणो। - एरिसा रुद्वि भुजेमि सुह-गय-मणो । सव्व गुण काम महु रुद्धि हं नरवई ।
कह अणाहो (ह)उं भणसि जुट्ठ जई ॥ . भुजण २, अयइ ३. सुमुहर ४. महि ५, इच्छिमं० ६, पसाइ हइ ग०.. ७. तुह ८, अवरोह ९. संजंतु १०. पुहइ