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धर्मसुन्दरकृत राज करइ तिहिं राउ, वसुदेव केरू जाउ । नेमिनु बंधव ए, नामि माधवू ए ॥११॥ .
फाग समुद्रविजय-धरि अवतरिउ, सुरतरु अवनि-शृंगार । प्रोणइ ए. जसु त्रिभुवन, बन जिम धनजलधार ॥१२॥ यादववंशविभूषण, दुषण कोइ न अगि । जिन तनि पाप-विहंडणि, गुण-मणि निवसइ रंगि ॥१३॥ संपद सवेअ समोपई, लोपइ पाप-प्रवेश । चतुर-चिंतामणिं जिनपति, सुरपति नमई असेस ॥१४॥ देखीय चरण सकोमल, कमल करई वनि वास । कमला पंकज परिहरि, जिम धारे रचई निवास ॥१५॥ रंजइ जस पय सुरवर, असुर नरेसर नाग । चरण--कमलि तिणि लागु, भागु वादि राग ॥१६॥ जस मुखि जीतु शशिधर, निसि भरि ऊगइ क्षीण । सोल कला शशि दीधीय, सुधीय वहइ प्रवीण ॥१७॥ त्रिभुवनजन-मनमोहन, मोहनवल्लि सुरंग ।। निरखीय यादव समरथ, मन्मथ थिउ अनंग ॥१८॥ तरुणी-जन मन-रंजन, अंजन-पुंज समान । सोहगसुंदर नयणडां, कमलडां लहइ उपमान ॥१९॥ उपरिभ (1) दीपई भमहडी, वांकुडी कज्जल-सार । तरुणी-जन-मण-आंकुडी. वंकुडी धनुष-आकारि ॥२०॥ सुरतरुवर तर नवदल, करतल करई उपहास । विद्रुम-पल्लव-नव-शिख, नख-शिख जीपइं जास ॥२१॥
.. अथ रासउ कमला केलि करइ जसु अंगि, सरसति वदनि वसति बहुभंगी,
रंगी सोहगसार ॥२२॥ तरुणी-जन मन-रंजन-स्वामि, तरूण-वय लीला गयगामी,
नरपति नेमिकुमार ॥२३॥