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लोककथा अध्ययननी ऐतिहासिक भौगोलिक पति १५ घणीवार एम पण बनवानी शक्यता छे के चोक्कस समय दर्शावनार साहित्यिक रूपान्तरमा प्राप्त थतुं कथा-तत्त्व ते समय करता पूर्वेना के पछीना समयना कथा-स्वरूपने जाळवतुं होय छे. उ दा. क्यूपिड अने साईकीनी कथा, जे एपलसियस [Apulcius] ना रूपान्तरमा [ईस्वीसननी बीजो शताब्दीमा] प्राप्त थाय छे. ए वखते तेनुं स्वरूप पूर्ण विकसित होय एम जणाय छे ते पग्थी एम अनुमान करी शकाय के आ कथाना मूळरूपनो उद्भव चोक्कस ई. स. पूर्वमा थयेलो होवो जोईए. [कमके अन्यथा बीजी शताब्दी सुधीमां कथा आवा विकसित स्वरूपमा प्राप्त थाय नहीं. कथाना मावा विकसित-स्वरूपना घडावामां आटलो समय व्यतीत थयो होवो जोईए एम कही शकाय].
आ प्रमाणे अनुकूळतापूर्वक मायोजित करेली माधार सामग्री- अर्थघटन करवानी दिशामा प्रयाण करवा भंगेना आ तो केटलांक सूचनो छे. जो अभ्यासक आ प्रयाण-मार्गमां एनी प्रतीक्षा करी रहेला गर्तथ पोतानी जातने मलप्त राखी शके भने तोलन-बुद्धिनो विनियोग करे तो जे कथानो ते अभ्यास करतो होय ते कथाना मूळ-रूप (arche type) नो समीप पहोंची शके छे. एर्नु आ कार्य भाषाना अभ्यासक ने सद्धांतिक रीते शब्दनुं इन्डो-युरोपी रूप घडो काढे छे, तेना जेवू ज छे.
मौखिक परंपराना पोताना विशाळ अनुभव अने अभ्यासना निष्कर्ष रूप एन्टी आर्ने भने एन्डरसने कथाना विकास भने परिवर्तन तथा परिवर्तनना केटलांक कारणोनुं 'नरूपण कयु छे, जे आ प्रमाणे छ : ।
१ कथानो कोई विगतर्नु विस्मरण खास कराने जे विशेष महत्त्वनी न होय. आ एक बाबतने कारणे घणी बधी कथामोमा परिवर्तन थयुं छे.
२. मूळमां न होय एवी विगतर्नु उमेरण. घणीवार तो मा अन्य कथामाथी आवेलं कथाघटक होय छे. जो के केटलीकवार ते केवळ नवसर्जन पण होय छे. सामान्यतः कथाना प्रारंभ के अंतमा मा प्रकारर्नु उमेरण थाय छे. ____बे के वधु कथाने एकी साथे सांकळी लेवी. आनो भोग सामान्यरीते लघु प्राणीकथा के दानवकथा अने धूर्तनी युक्तिमो बने छे.
५. विगतोनु पुनरावर्तन सामान्यतः त्रणेकवार..
५. मूळकथामां एक •ज वार भावता प्रसंग पुनरा र्तन केटलीकवार खरेखर मा पुनरावर्तन नथी होतुं पण एज कथा के अन्य कथ मां आनो साथे * सादृश्य घरावती वस्तु होय छे.