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बापालाल वैध निरुक्ति-शोभना आपोऽस्मिन् इति सूपः । जेमां पाणीनो सारो भाग होय छे ते सूप कहेवाय छे.
अंग्रेजीमा Soup-सूप शब्द छे ते आपणो ज लीधो छे प्राचीन समय मां भात बनावनार अने दाळ बनावनार जुदा जुदा रसोईयाओ हशे.
सूपं करोति इति सूपकारः। अन्धो भक्त शिल्पं येषां मान्धसिकाः ।
ओदनं शिल्पं येषाम् औदनिकाः । स्पकार, आन्धसिक, औदनिक-रसोईया माटेना नामो छे. जे जे कठोळना गुण आपेला छे ते न गुण तेनो दाळना समजवाना छे.
दाळ माटे संस्कृत शब्द सुप छे 'सूपयोग्यं शमीधान्यं इति सूप्यः ।' मगना सूपने 'सूप्योत्तम' कहेलो छे, अर्थात् बधी जातनी दाळोमा मगनी दाळ उत्तम छे. मगनो सूप व्रण, कंठ, भक्षिरोगीमो माटे खूब ज पथ्य छे.
सुश्रुत कहे छे के "सुस्विन्नो निस्तुषो मृष्ट ईषत् सूपो लघुर्हितः ।" अर्थात् कठोळ उपरनी छाल काढी नाखी, खूब पाणोमां ते एकरस थई जाय प्यां सुधी बाफी, बनाववामां आवती दाळ के ओसामण पचवामां खूबज हलका छे. दरदीने सूप आपवो होय त्यारे दाळने लोखंडना तवा उपर सेकी लेवी हितावह छे. सेकवाथी ते सुपाच्य बने छे, एटले सुश्रुते 'ईषत् भृष्टः' कह्य छे. दरदीने सूप आपत्रो होय त्यारे दाळने की देवी ज जोईए.
दाळ सारी रीते चढी गएकी होवी जोईए कठोळ फाटी जाय तेटला चाफा जोईए. पछी तेमां घी, तेल, हिंग, मेथी, मरचा वगैरेनो वधार (सस्कार) आपदो जोईए. दाळमां भांबलोनी खटाश पण नाखवो जोईए.
नत्रिलनु एक मात्र साधन आपणो पासे कठोळ ज छे. गुजरातीमो रोज तुवेरनो दाळ खाय छे-पंजाबो भने उत्तर हिंदना माणसो भडदनी दाळ रोज खाय छे. केटलाक मगनी दाळ वापरे छे. केटलाक (मुसलमान, पारसी, युरोपियनो) मसूरनी दाळ वापरे छे. हिंदुओ भने जैनो मसूर खाता नथो, नहि खावामां धर्म