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nate उपनिषदों की दार्शनिक चर्चा
नवीन उपनिषदों का ब्रह्मवाद प्राचीन उपनिषदों की विरासत रूप था तथा ईश्वरवाद एक नवस्वोकृत सिद्धान्तरूप, और इन उपनिषदों के रचयिताओं की दार्शनिक अभिरुचि इतनी परिपक्व न थी कि वे इन दो वादों के सम्मेलन से एक इकाईबद बाद तैयार कर सकें । जो काम नवीन उपनिषदों के रचयिताओं के लिए संभव न बन पड़ा उसे अपने अपने समय में करने का प्रयास किया वेदान्त साहित्य के ईश्वरवादी व्याख्याकारों ने । यह प्रयास कहाँतक सफल हुआ यह एक दूसरा प्रश्न है लेकिन यह सोचना अवश्य भ्रान्ति होगी कि वह नवीन उपनिषदों में ही सफल हो गया था । वस्तुतः नवीन उपनिषदों में एक सुसंगत ईश्वरवादी ब्रह्मवाद उसी प्रकार अनुपस्थित है जिस प्रकार कैसा ही मायाबाद; हुआ केवल इतना है कि उनके शब्दों को ईश्वरवादी तथा मायावादी व्याख्याकारों ने अपना अपना मनोनुकूल अर्थ पहना दिया है ।