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________________ एक प्राचीन-गूर्जर बारहमासा काव्य गुरु-स्तुति-चर्चरी र म शाह बारहमासा काव्यप्रकार पुरानी गुजराती-राजस्थानी, हिंदी, बैगला आदि माहिन्य मे शताब्दियों से प्रचलित है। गुजराती में ठेठ तेरहवी शताब्दी से बारहमामा (गुज. बारमासी) काव्य मिलते हैं। ___ उपलब्ध गुजराती बारहमासा काव्यो में पाल्हण कृत 'नेमिनाथ बारमासा' (रचना वर्ष सं १२८९) अबतक प्राचीनतम माना जाता है। उनकी समकालीन एक बारहमासा कृति यहाँ प्रस्तुत है, जो खेतरवसही जैन ज्ञान भंडार, पाटण से उपलब्ध नाडपत्रीय हस्तप्रत में मुझे प्राप्त हुई है। इसी प्रति मे आगमगच्छीय आचार्य जिनप्रभमूरि की अनेक रचनाएं लिखी हुई हैं। उन्ही रचनाओं के साथ होने से और भापा तथा रचना शैली में साम्य होने से प्रस्तुत कृति उन्हीं की रचना होने की अधिक संभावना है। जिनप्रभसूरिका समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण निश्चित है। शृंगारनिरूपक बारहमासा काव्यप्रकार का जैन कवियों ने वैराग्यबोधक रचनाआ में सफल विनियोग किया है। यहां प्रकाशित काव्य बारह मासे के वर्णन के साथ गुरु के गुणों की स्तुति करने के लिए रचा गया है। यह सरल उपमालंकार से विभूषित, स्वाभाविक भाषा प्रवाह में सद्गुरु के गुणों का भाववाही वर्णन करने वाल्य अपने ढंगका एक सुंदर काव्य है। __ काव्य की भाषा उत्तरकालीन अपभ्रंश है, जिसमें गुजराती की प्रथम भूमिका का उद्भव स्पष्ट दिखाई देता है। छंद प्रसिद्ध दोहा छंद है। ___ काव्यान्त उल्लेख में काव्य को चाचरी बताया गया है और गूर्जरीराग में उनका गान किया जा सकता है ऐसी सूचना है। 1 प्राचीन-मध्यकालीन बारमासा सग्रह, ग्वड १ सपा. संशो डा. शिवलाल असलपुरा, अमदावान, १९७४, १ .. देखें-'आगमगच्छीस जिनप्रभसूरि कृत संविद्वय' र. म. शाह, सबोधि वर्ष ., अ .
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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