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समराइचकहा मे...
कहा जाता था। इस में मणि जटित रहते थे। हर्षचरित में स्त्रियों द्वारा कटि प्रदेश में धारण की हुई करधनी के रूपमें इसका उल्लेख है।120 भगवतीसूत्र,131 आदिपुराण तथा यशस्तिलक18 में भी इसका उल्लेख है। इन उल्लेखों से स्पष्ट होता है कि मणिमेखला का प्रयोग धनी सम्पन्न एवं राजघराने की स्त्रियां किया करती थीं।
कटिसूत्र-समराइच्चकहा में इसे मी आभूषणों की श्रेणी में गिनाया गया है। यह भी मणिमेखला की तरह कमर में पहना जाने वाला अलंकार था जिसे अधिकतर राज-पुरुष ही धारण करते थे। सम्भवतः यह स्वर्णसूत्र और रेशम का बना होता था । कटिसूत्र का उल्लेख आदिपुराण में भी आया है।12।
कठक-समराइच्चकहा में इसका उल्लेख अलंकारा की श्रेणी में हुआ है।190 किन्तु इसकी बनावट आदि का उल्लेख नहीं है। यह कंठ में पहना गाने वाला एक अलंकार था। आदिपुराण में कंठाभरण137 का उल्लेख मिलता है जो स्वर्ण और मणियों द्वारा तैयार किया जाता था। सम्भवतः यह स्त्री-पुरुष दोनों का आभूषण था। ___ मुकुट198–समराइच्चकहा में इसे सिर पर बांधने वाले अलंकार के रूप में प्रयुक्त समझा गया है, जिसे ताज' कहा जाता है। इसका प्रयोग राजा-महाराज, राजकुमार और राजपरिवार की स्त्रियां ही करती थीं। अजन्ता के मित्ति-चित्रों पर रत्न बटित लम्बोत्तरा मुकुट, चोटीदार मुकुट, मोती की लड़ी से अलंकृत लम्बोत्तरा मुकुट, कलगेदार मुकुट आदि विभिन्न प्रकार के मुकुट अक्ति किये गये हैं 13 आदिपुराण में भी कई स्थानों पर मुकुट का उल्लेख है।150 भगवतीसूत्र से पता चलता है कि ताज का प्रयोग राजा और राजकुमार ही करते थे।181
चूड़ामणि-समराइच्चकहा में इसे मणि और रत्नों से जटित बताया गया है।159 हर्षचरित में मालती के शरीर पर कटि प्रदेश में करधनी, गले मे मुक्ताहार, कलाई में सोने का फड़ा आदि के साथ केशों में चूडामणि मकरिका नामक आभूपण का उल्लेख है।158 यह आभूषण स्त्रियां अपने बालों को गूंथ कर उसमें धारण करती थीं। आदिपुराण में तो चूडानगि 84 और चूहारत्न दोनों का उल्लेख अलगअलग किया गया है। यद्यपि अलंकार की दृष्टि से दोनों समान समझे जाते थे किन्तु मणि और रत्नों के जटित होने के विभेद से अलग-अलग नाम गिनाये गये हैं।
संदर्भ
1 मोतीवन्द्र-प्राचीन भारतीय वेशभूषा, भूमिका, पृ. 3। 2 वही-भूमिका, पृ. 2। 3 बही-पृ. 31 4 सप०क. 4, पृ. 297.5, पृ. 495:8, पृ. 798 । 5 मोतीचन्द्र-प्राचीन भारतीय वेशभूषा, भूमिका, पृ. 9।