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________________ समराइचकहा में... -u देवष्य-यह एक दिव्य किस्म का वस्त्र था जिसका प्रयोग अधिकतर धार्मिक प्रवृत्ति के लोग तथा राजा महाराजा ही करते थे। आदिपुराण में दूष्य का उल्लेख है जिसके अनुसार दूष्यशाल 4 कपड़े की चांदनी के लिए प्रयुक्त समझा जाता था। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार स्तूप के शरीर पर जो कीमती वस्त्र चढाये जाते थे वे देवदूष्य कहलाते थे। भगवतीसूत्र में देवदूष्य को एक प्रकार का देवी वस्त्र बताया गया है जिसे भगवान महावीर ने धारण किया था 150 क्षौम वस्त्र--समराइच्चकहा में इसका उल्लेख कई जगह किया गया है। वैदिक साहित्य में भी इसका उल्लेख है जिसे डा. मोतीचन्द ने अलसी की छाल से निर्मित बताया है।88 तैत्तिरीय संहिता में भी इसका उल्लेख आया है।३१ आश्वलायन श्रौत सूत्र में क्षोम का उल्लेख दान देने के संदर्भ में हुआ है। आदिपुराण में भी क्षौम का उल्लेख है जो अत्यधिक कीमती, मुलायम और सूक्ष्म होता था । 1 हर्षचरित से पता चलता है कि आसाम के राजा भाष्कर वर्मा ने हर्ष को बहुत से क्षौम के लम्बे टुकड़े भेंट स्वरूप प्रदान किये थे । डा यासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार यह आसाम और बंगाल में उत्पन्न एक प्रकार की घास से निर्मित किया जाता था। काशी और पुण्ड देश क्षौम के लिये प्रसिद्ध थे। उपरोक्त उल्लेखों से स्पष्ट होता है कि क्षौम एक प्रकार का महीन, कीमती एवं सुन्दर वस्त्र था जिसका प्रयोग अधिकतर धनी, सम्पन्न एवं राजघराने के लोग ही कर पाते थे। पटवास-समराइच्चकहा में पटवास का भी उल्लेख है। आदिपुराण में पटांशुक का उल्लेख है। जिसका अर्थ रेशमी वस्त्र लगाया जा सकता है। पटवास और पटांशुक एक दूसरे से भिन्न थे। पटांशुक एक कीमती रेशमी वस्त्र था जिसका प्रयोग धनिक ही कर पाते थे जबकि पटवास सूती एवं सस्ता वस्त्र था जिसका प्रयोग साधारण लोग भी करते थे। हर्षचरित में राज्यश्री के विवाह के समय नये रंगे हूए दुकूल वस्त्रों के बने हुए पटवितान लगे हुये थे और पूरे थान में से पट्टियां और छोटे-छोटे पट्ट फाड़कर अनेक प्रकार की सजावट के काम में लाये जा रहे थे, यहां वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार पट पूरा थान था और पटी लम्बी पट्टियां थीं जो झालर आदि के काम में लायी जा रही थी। इन सब उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि पटवास सम्भवतः साधारण किस्म का कपड़ा रहा होगा। पल्कल-इसका प्रयोग अधिकतर जंगल में रहनेवाली जातियां अथवा साधु-संन्यासी करते थे। छाल के वस्त्र को वल्कल कहा जाता था जो बौद्ध भिक्षुकों को अविहित थे। कालिदास ने कुमारसंभव में वल्कल घस्त्र का उल्लेख किया है। बाणभट्ट ने उत्तरीय और चादर के रूप में वल्कल के प्रयोग का उल्लेख किया है। 1 हर्षचरित में उल्लिखित है कि सावित्रीने कल्पद्रुम की छाल से निर्मित वल्कल वस्त्र धारण किया था। ___अन्य क्स उत्तरीय-समराइच्चकहा में उत्तरीय को चादर के रूप में उल्लिखित किया गया है जो कमर से उपर ओढ़ने के प्रयोग में आता था । उत्तरीय कन्धों पर
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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