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________________ तत्त्वार्थसूत्र-ऐतिहासिक मूल्यांकन आवती ज्यारे बीजा संदर्भमां बीजी. उमास्वाति पोताना ६. ६ सूत्रमा भावी चार संचीओनो निर्देश करे छे, अने तेमने प्राप्त ग्रंथो उपर स्वतंत्रपणे दृष्टिपात करता स्पष्ट जणाय छे के आ चार सूचीमो वधताओछा प्रमाणमा उपयोगमा लेवाती ओ ग्रंथोना केटलाक गधखंडोमा कयुं छे के पांच अप्रतो कर्मबन्धन कारण छ, केटलाकमां को छ के चार कषायो कर्मबन्धन कारण छ, केटेलाकमा कय के के पाँच इन्द्रियोना विषयौनों भोग कर्मबंधन कारण छे, केटलाका कहां छे के पांच क्रिया औ (वस्तुतः पांच क्रियापंचको अर्थात् पचीस क्रियाओ) कर्मबन्धन कारण के. आमांनी प्रत्येक सूचीने तेनी पौतानो इतिहास छे ते उमास्वासिनी समजबहोर छ, उदाहरणार्थ, सूत्रकृतांग २. २नी क्रियाविषयक चर्चा ते समयनी होवी जोईये ज्यारे उमास्वातिए जणावेल कोई पण क्रियापंचक घडवामां आव्यो ने तो. वळी तेमणे जणावेल व्रण क्रियापंचको तो भेटला बधा उत्तरकालीन के के पूर्वकालीन कोई चर्चामा तेमनो उल्लेख नथी--मा त्रण क्रियापंचकोने संपहसूचोरूम स्थानांगमा नौधवामा व्या छे अने तेमां पण ते पाछळथी उमेराया होवा जोईए. परन्तुं आ ऐतिहासिक दृष्टिना अभावनी बाबतमा उमास्वाति आपणा बीजा बधा प्राचीन ग्रंथकारोनी साथे छे, एकला नथो. प्रस्तुत सूत्रमा उमास्वाति सामान्यपणे कर्मबन्धनी वात नथी करता पण कर्मबन्धना एक प्रकार सापरायिक कर्म पन्धनी वात करे छे, परन्तु तेथी आपणे जे कहेवा मागीए छीए तेमा कई फरक पडतो नथी. केम' समजावोए छोए. कर्मबन्धबना ईपिथिक प्रकारथो कर्मबंधना सोपरायिक प्रकारनो भेद जणाववामां आव्यो छे. ईपिथिक कर्मबंध आदर्श साधुनी दिनचर्याथी थाय छे भने तेनी मानी लीधेली विशेषता ए छे के क्रियान फळ ते ज वखते अने त्यां न भोगवाई जाय छे एटले फलभोग माटे पुनर्भव जरूरी नथी मापणा प्रस्तुत प्रयोजन माटे जेने पुनर्मव जरूरी नथी ते कर्मबंध कर्मबंध न होई प्रस्तुत सूत्रमा उमास्वाति कर्मबन्धनो ज वात करे छे भने कर्मबन्धना कोई एक खास प्रकारनी वात करता नथी एम धारवामा अमे साचा छोए. उमा. स्वातिने नडती बीजी मुश्केली वधु गंभोर छे. सूत्र ६.३-४ मा कहयु छे के सुकृत्योथी पुण्यकर्मनो बन्ध थाय छे भने दुष्कृत्योथी पापकर्मनो बध थाय छे. परंतु हमणा ज आपणने कहेवामां आव्यु तेम जो बघो कर्मबंध अवत, कषाय, इन्द्रियविषयभोग भने क्रियाने कारणे थतो होय तो सागं कृत्यो पुण्य कर्मनो बंध केवो रोते करी शके ए समजवू कठण छे. ६. ११-१६ सूत्रोमां जाणे के गर्मित
SR No.520753
Book TitleSambodhi 1974 Vol 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages397
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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