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________________ संबोधिके गतांक में कवि दिये हैं तदुपरांत एक विशिष्ट कवि बंदिक' ले० पं० अमृतलाल मोहनलाल भोजक बंदिककृत हरिवंशग्रन्थके संबंध में मैने जो आधार उल्लेख यहां दिया जाता है। वि. सं. ९१५ में रचित आचार्य श्री जयसिंहसूरिकृत धर्मोपदेशमाला - विवरण में वन्दिकाचार्य कृत ग्रन्थ का अवतरण इस प्रकार दिया है- "उक्तं च श्रीमदवन्दिकाचार्येण - - समुद्रविजयोऽक्षोभ्यः स्तिमित [:] सागरस्तथा । हिमवानचलश्चैव धरणः पूरणस्तथा ॥ अभिचन्द्रश्च नवमो वसुदेवश्च वीर्यवान् । वसुदेवानुजे कन्ये कुन्ती मद्री च विश्रुते ॥" (सिंघी जैन ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित 'धर्मोपदेश - माला - विवरण' पृष्ठ ७) उपर्युक्त अवतरण के आधार से 'धर्मोपदेशमाला - विवरण' के विद्वान् संपादक पं० श्री लालचन्दभाई गान्धी ने अपनी प्रस्तावना के छठे पृष्ठ में श्रीवन्दिकाचार्यकृत ग्रन्थ की नोंध ली है । यद्यपि इस अवतरण में हरिवंशग्रन्थ का नामोल्लेख नहीं है तथापि इसमें हरिवंशकथा से सम्बन्धित दश दशारों के नामोल्लेख के आधार पर श्री वन्दिकाचार्यकृत हरिवंश के ये अवतरण है, यह विधान सहज भावसे स्पष्ट होता है । बंदिक कविकृत हरिवंशग्रन्थ के सम्बन्ध में मैने यहां उपर सूचित 'संबोधि ' त्रिमासिक के अंक में स्पष्टता की है। वहां कुवलयमालाकथा की जो गाथा अवतरणरूप से दो है इसके चतुर्थ चरण में 'हरिवंसं चेव विमलप' पाठ को मैने प्राधान्य दिया है। मेरे सूचित लेख में निर्दिष्ट और यहां दिये हुए अवतरण से यह सुस्पष्ट होता है कि वन्दिकाचार्यकृत हरिवंशग्रन्थ था जो आज अनुपलब्ध १. Sambodhi, Vol. I. No 4 January 1973 में मुद्रित 'कवि बंदिक' शीर्षक लेखको पूर्ति
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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