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कालिदासनी नाट्योक्तिओ
प्रविश्य जेवी अपरिपक्क नाटयोक्तिओ विशेष छे, जे शाकु० मां नहिवत् छे जेने Psychological stage directions कही शकाय तेवां पात्रना मानसने अभिव्यक्त करतां रङ्गसूचनो माल० करतां शाकु० मां गुण अने संख्यानी दृष्टिए सविशेष छे. अहीं तेनी उत्क्रांति थई छे. हवे ए बलवत् शिक्षित छे, नाटयशास्त्र उपरांत पात्र, समाज, प्रसंग के रसने परिपोषक एवी अनेक नाट्योक्तिओ कालिदास पूरी पाडे छे, तेना आ प्रस्थाननुं सरळताथी के सफलताथी कोई पाछळनो नाट्यकार अनुकरण पण करी शक्यो नथी.
कालिदासनी सर्वोपरि विशेषता तो ए छे आवी नाटयोक्तिओ उपरांत केटलीक पात्रोनी उक्ति मां कया पात्रे केवी रीते अभिनय करवो ए सूचवी दे छे त्यां तेनुं प्रयोगविज्ञाननुं ज्ञान प्रत्यक्ष थाय छे. उदा० विक्रम ० ५ मां अक्रमां प्रवेश करती वखते उवर्शी (कुमारमवलोक्य) को नु खल्वेष सवाणासनः पादपीठे स्वयं महाराजेन संयम्यमान शिखण्डकस्तिष्ठति । पोताना बाळकना मस्तक पर हाथ फेरववो के वाळ ठीक करवा ए पितामाटे वात्सल्यने व्यक्त करती सहज क्रिया छे. अने पुरूरवा ए करी रह्यो छे. पुरूरवानुं पात्र भजवनार नटे आ क्रिया करवी ए सूचना नाटयसूचना द्वारा नहि पण उर्वशीना उच्चारायेल वाकयना एक शब्द द्वारा कवि करी रह्यो छे. कालिदासमां आवा अभिनेय अंशोनुं सूचन करतां वाक्यों के वाक्यांशो एक नवा संशोधनपत्रनो विषय पूरो पाडे तेम छे,