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________________ मान कर केवल बुद्धि को ही ईश्वर में मानते हैं उनके विरुद्ध इस दृष्टि से इस मी नहीं कहा जा सकता। इस दृष्टि से वे सच्चे लाते हैं। श्रीधर ईश्वर में केवळ अति को ही मानता है। किन्तु ईश्वर में केवल ज्ञान ही है तो वह जगन्निर्माण कैसे कर सकता है ? अ. इच्छा को तो ईश्वर में मानना ही चाहिए। ईश्वर में इच्छा मानी आय तो उसे नित्य ही माननी पडेगी और ऐसी नित्य इच्छा ज्ञान को निरर्थक तो नहीं बना देगी? नहीं, मन निरर्थक नहीं बनेगा। ईश्वर की इच्छा स्वरूप से नित्य है-अर्थात् वह मनःसंयोगसापेच नहीं। किन्तु उसका विषय कभी यह होता है तो कभी वह होता है। उसके विषय छ नियामक ज्ञान है । ईश्वर का ज्ञान तो युगपद् सर्वविपयक है तो उसकी इच्छा युगपर सर्वविपयक क्यों नहीं ? जीव भी जिन विषयों को जानता होता है उन सबकी इच्छा नहीं करता किन्तु जो भोगयोग्य है उसको ही चाहता है। उसी तरह या या सभी विषयों को जानता है फिर भी जो विषय उस उस समय उस उस जीव के भोगने योग्य होते हैं उसीकी इच्छा करता है । ईश्वर यह भोगयोग्यता ज्ञान से जानता है। जीव भी अमुक वस्तु उसे सुखकर है या दुःखकर है यह झान से जानता हैं। इस अपेक्षा से ईश्वर में ज्ञान और इच्छा दोनों को माननेवाले सच्चे लगते हैं, उद्योतकर ईश्वर में ज्ञान और इच्छा दोनों मानते हैं। किन्तु यहां कोई प्रश्न कर सकता है कि इच्छा में ही ऐसा अतिकाय क्यों नहीं मान लेते कि ईश्वर जिस समय जिसके लिए जो योग्य फळ होता है उस समय उसके लिए वही फल चाहें। ईश्वर की इच्छा कभी. अयोग्य होती ही नहीं, स्वतः कोच ही होती है ऐसा क्यों न माना जाय? और इसे ही उसकी इच्छा का महत्त्व का मसिक्खयों नहीं मान लिया जाय? ऐसी इच्छा मानने पर सर्वविश्यक नियम की कोई आवश्यकता नहीं रहती। अतः ईश्वर में केवल इच्छा माननेवाले का मतमोर सकता है। प्रशस्तपाद महेश्वर में केवल संकल्प को ही मामला है। महेर संप को. ज्ञानकी कोई आवश्यकता नहीं रहती ।। सांदी - १ तन्मात् सूत्रकारमन्तेः नास्तीश्वरः । युरिक्तदीपिका, का २ " The Vallesika Sutras....originally did not accept the existence of God.'" Garbe, Philosophy of Ancient India, P.23. ३ ...अणू ना मनसचाद्यं कर्मादृष्टकारितम् । वै. सूरः ५.१.१३ ।। ४ बुद्धिपूर्व वाक्यकृतिववे। वैः सी. -६१५ ..
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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