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________________ ई कर कहा जा सकता है कि यदि ईश्वर का प्रयत्न free है तो उसे भी की कोई उपयोगिता नहीं होनी चाहिए। और इच्छा को क्यों मानते हो ? २५ नित्य प्रयत्न के तरफ ईश्वर में वृद्धि इस प्रश्न का उदयनाचार्य द्वारा दिया गया उत्तर विचारणीय है। वह कहता है कि अनित्य प्रयत्न में दो धर्म हैं - (१) वह ज्ञानजन्य है, (२) ज्ञान का जो विषय होता है वही प्रयत्न का विषय होता है" । प्रयत्न नित्य होने से आत्मन्यम ( स्वोत्पत्ति ) के लिए ज्ञान की आवश्यकता नहीं किन्तु विषय के सि को उसे ज्ञान की आवश्यकता है" । प्रयत्न स्वरूप से ही ferrer नहीं होता । यदि उसे स्वरूप से ही विपयत्रण माना जायगा तो प्रयत्न और ज्ञान में कोई भेद ही होगा। प्रयत्न और ज्ञान के बीच यही भेद है कि प्रयत्न स्वरूप से नहीं जब कि ज्ञान स्वरूप से अर्थप्रण है। यदि ईश्वर के नित्य प्रयत्न को निर्विषय माना जापानो ऐसा निर्विषय प्रयत्न विषयों का (= परमाणुओं का) प्रेरक कैसे बन सकता है? क प्रयत्न को सविषय ही मानना चाहिए। और उसे विषय माना जायगा तो मानना ही पड़ेगा क्योंकि वह ज्ञान के द्वारा ही सविषय बनता है"। वहां कोई उठा सकता है कि न्यायवैशेषिकों द्वारा मुषुप्तावस्था में माना हुआ जीवनपूर्वक प्रक् तो ज्ञानेच्छापूर्वक न होने पर भी सविपय है तो फिर उस ईश्वर के नित्य प्रन को भी ज्ञान इच्छा निरपेक्ष सविपय क्यों नहीं मानते हो ? उदयन इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि जीवनपूर्वक प्रयत्न ज्ञानेच्छापूर्वक प्रयत्न से भिन्न जाति का है अतः जीवनपूर्वक प्रयत्नके आधार से जो प्रयत्न जीवनपूर्वक नहीं ऐसे ईश्वर के विश्व विषय में ऐसा निश्चय नहीं किया जा सकता । " को के ( ९ ) समापम इस ईश्वरविषयक चर्चा का समापन दो महत्व की बातों का विचार कर के करेंगे। वे दो बातें ये हैं - (अ) न्याय-वैशेषिकों की ईश्वरकल्पना का आधार (model) और (ब) ईश्वर में बुद्धि, इच्छा और प्रयत्न मानने के विषय में न्याय-वैशेषिकविचारकों के मतभेद का तार्किक मूल । (अ) न्याय-वैशेषिक की ईश्वरकल्पना का आधार अकर्ता ईश्वर की न्य आधार निर्माणकायकर्ता योगी है। इसका सूचन वात्स्यायन भाव में हमें मिला है। वात्स्यायन तो उस योगी को ही ईश्वर मानता है ऐसा जाता है। निर्माणकाय की प्रक्रिया के अंग : (१) योगी केवल संकल्प से ही निर्माणकाय बना है, उसमें शरीर की अपेक्षा नहीं रहती । (२) योगी के संकल्पमात्र से ही परमाणुओं में प्यारंभक कर्म (motion) कल्पन होता है।
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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