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________________ ईश्वर के विपय में कोई इस प्रकार की बाधा उपग्थिन करता है जगन में बद. पट आदि कार्यों का कर्ता जो हमें दिम्याई दना है, वा आहे. अन जग कर्ता को भी शरीरी मानना चाहिए । घट कार्य का कर्ता कुम्हार ही पहले पहल ना उस कार्य को उत्पन्न करने के लिए किन कारणों की आचटयाना है यह जानना है, फिर कारणों की सहायता से कार्य को उत्पन्न करना चाहता है. पर अनन प्रयत्न (= उत्साह, Lolitional effort) काना है. उसके बारगर से अनरप व्यापार करता है, उसके बाद अन्य कारणों को कार्यापान में प्रधुन करता है. फिर कार्य उत्पन्न करता है ना ही लोक में देखा जाता है। अनवानी याद जगत का कर्ता है तब वह शी ही होना चाहिए। यदि कही कार्य के अतिशयों के कारण ईश्वर शरीर के बिना ही जगत कपन्न करता है तो वह कथन भी ठीक नहीं, क्योंकि इसी तर्क को बढ़ा कर पृछा जा मत्रता है कि बुद्धि के बिना ही (अर्थात केवल इच्छा से ही) अपने अनिठाय से वह जगन को क्यों नहीं बनाना' यदि कहो कि जगत में घट. पट आदि कार्य का कर्ता बुद्धिमान ई अन. जगन क्य कर्ता भी बुद्धिमान होना चाहिए तो इर्मा नर्क के आधार से यह भी बोचर करना चाहिए कि जगत का कर्ता शरारी है क्योंकि घट, पट आदि का वर्मा इर्ग है। श्रीधर इसका विस्तृत उत्तर देता है। वह यह है-कर्तृत्व किसे कहने हो । स्था 'शरीर के साथ सम्बन्ध होना' इसे कर्तृत्व कहने हो ! या 'जिन कारणों में पर्य उत्पन्न करने का सामर्थ्य प्रतीत हुआ हो उन कारणों को कार्यान्पति में प्रेरन करना इसे कर्तृत्व कहते हो ? यदि शरीर के साथ सम्बन्ध होना' इसे कद कहने हो ना सुपुप्त व्यक्ति में और कार्य करने में उदासीन व्यक्ति में भी कर्तत्व मानना पंडगा। अतः ‘योग्य कारणों को कार्यान्पत्ति में प्ररित करना' ही दH-है गंमा मानना चाहिए किन्तु 'शरीर के साथ सम्बन्ध होना' वह कर्तृत्व नहीं। इस प्रकार का कर्तव्य शरीरसम्बन्ध के बिना भी शक्य है। उदाहरणार्थ, जीवात्मा को अपने शरीर को प्राग्न करने के लिए किसी अन्य शरीर के साथ सम्बन्ध जरूरी नहीं-जीव स्वतः ही अपने शरीर को प्रेरित करता है। यदि कहो कि जीच का पूर्वकर्मार्जित शरीर के साथ जी संबंध है वही उसको उस शरीर की प्रेरणा करने में सहायक कारण है तो यह टीक नहीं. क्योंकि उसका अपने शरीर के साथ सम्बन्ध होने पर भी यह अपने शरीर में अपने शरीर को प्रेरित करता है ऐसा नहीं माना आ सकता। चाहे जितना भी मुशाय नट क्यों न हो वह अपने कन्धे पर चढ़ नहीं सकता और चाई जिमनी भीनीया छूरी क्यों न हो वह अपने आपको काट नहीं सकती, उसी तरह चतन की सहायता से भी शरीर स्वयं को प्रेरित नहीं कर सकता। यदि कहो कि जिस प्रकार जीव के द्वारा की गई प्रेरणा का आश्य शरीर है अर्थात् जीव शरीर को प्रेरणा काना है, उसी प्रकार ईश्वर द्वारा की गई प्रेरणा का आश्रय भी उसका शरीर ही क्यों नहीं हो ? उसका उत्तर यह है कि ईश्वर के द्वारा की गई प्रेरणा का आप्रय परमाणु है। ईश्वर की प्रेरणा से परमाणु स्वकार्य में प्रवृत हान है। यहां विरोध पुनः शंका उठाते हैं कि जीव स्वशरीर को इच्छा और प्रयत्न से प्रेरित करता है और
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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