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________________ कर्पूरमंजरी अने स्वामिभक्त सेवकनुं कथाबिंब हसु याज्ञिक संवत १६०५मा मतिसारे रचेली कर्पूरमंजरीनी कथा, काव्यत्व भने कथानिरूपणनी दृष्टिए सामान्य कृति होवा छतां लोककथा तरीके मध्यकालीन गुजराती साहित्यनी महत्वनी कृति छ । दुहा अने चोपाईनी कुल ४११ पंक्तिओर्नु पूर धरावती मतिसारनी प्रस्तुत रचनाने डा. भो. ज. सांडेसराए इ.स. १९४१मां संपादित करी प्रकाशमां आणी छे। कथाना अंतमां आ कृतिनो रचयिता पोतानी ओळख 'कवि पंडित मतिसार' तरीके आपे छे अने काव्यारंभन मंगलाचरण गणपतिनी स्तुतिथो करे छे, एथी स्व. श्री. चि. डा. दलाले मतिसारने जैनेतर कथाकार मान्यो छे । परंतु जैन कविओ माटे पण गणपति अने शारदास्तवनथी कृतिनो मंगलारंभ करवानो रिवाज कचित् स्वीकारायो छे तेथी तथा जिनशासननु माहात्म्य मतिसारे आप्यु छ एथी डॉ. सांडेसरा माने छे तेम कवि जैन ज प्रतीत थाय छे । सं. १६७८मां रचायेल शालिभद्रमुनिरास तथा सं. १६९९मां रचायेल चंपकसेनरासना कर्ता तरीके जिनसिंहसुरिशिष्य मतिसागरनुं नाम मळे छे । कर्पूरमंजरीनी रचना सं. १६०५मां थयेली छे तेथी मतिसार अने मतिसागर स्पष्टतः भिन्न कविओ छे । आथी कर्पूरमंजरीनी रचना करनार मतिसार जैन होवानो संभव छे तथा एनी रचेली एक कृति ज हाल उपलब्ध छे,' एथी विशेष कर्ता अने एनी अन्य कोई कृति होय तो ते कृतिनी विगत मळती नथी । कर्पूरमंजरी नामाभिधानवाळी अन्य कृतिओमा विशेष ध्यान खेचती कृति छे कनकसुन्दरकृत कर्पूरमंजरी । हकीकते तो ए रचना प्रस्तुत कथानकनो ज बोजो अवतार छे अने एना कथानकसाम्यनी अत्रे मागळ चर्चा करेलो छ। अन्य कृतिओमां एल. डी. इन्स्टीटयूटमा पुण्यविजयजी भंडार परिग्रहण संख्या ३६६०मा कर्पूरमंजरी कथानिका नाटिका अने ६४८८ करमंजरीरास नामनी कृतिओ नोधायेली छे । मतिसारकृत कर्पूग्मं जरीना कथानकने मुख्य माळखा रूपे स्वीकारीप तो एने मळती कथानां मुख्य त्रण स्वरूपो मळे छः १. डॉ. भारती ये रास-साहित्यमा आपेला टिप्पणमा गुणधर्मरास नामनी मतिसारनी १६४२मां रचायेली कृति नोंधेली छे. .
SR No.520752
Book TitleSambodhi 1973 Vol 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages417
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size14 MB
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