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गांधर्वमा 'रक्ति'
मधुसूदन ढांको भारतना प्राचीन अने मध्यकालीन संगीतशास्त्रकारोए गांधर्व-गीत-वाद्यताल-ना सिद्धान्तोने जे सूक्ष्मता, संदृष्टित्व अने वैज्ञानिकताथी संघटित-स्फुटित कर्या छ तेनो समकक्ष अने समकालिक जगत्-साहित्यमा जोटो नथी. गांधर्वना अंग-उपांगो अने लक्षणोनी जेटलो विशद अने गंभोर मीमांसा भारतनां पुराणां संगीतशस्त्रोमां थयेली छे तेटली (पाश्चात्य संगोत-संप्रदायनी सिद्धान्त-विषयक संप्रति चर्चाने छोडतां) क्यांये थयार्नु जाण्यु नथी. * गांधर्व-दर्शनकारोए पारखेल अने प्रस्थापेल गीत-कारणना मूलगत सिद्धान्तो एटला अर्थपूर्ण, अर्थगहन, अविचल अने सनातन छे के तेनी नित्यता, सत्यता अने सार्वदेशीयता विशे संदेहने भाग्ये ज स्थान छे. 'वर्ण', 'अलंकार', 'तान', 'मूर्छना', 'ग्राम', 'जाति' भने 'राग' ए भारतीय परम्परानां विशिष्ट निजी अंग-उपांगो छे, जे विश्वना अन्य ऋण गांधर्व-संप्रदायो-अरब्बी, चीनी अने पश्चिमीनी साथे बहु वा गाढो संबंध राखता नथी, पण संगीत-कारणनां पायानां त्रण तत्त्वो-नाद, श्रुति अने स्वर-तदुपरान्त 'रक्ति' आदि 'स्थाय' वा गुणविशेष तो सौ संप्रदायोना संगीतमां पण असंप्रज्ञातपणे, वगर कहये अंतर्भूत होइ, ते पर भारतीय पक्षे थयेली विचारणा साराये संगीत-जगतने उपयोगी छे. 'रक्ति' विशे कहेता पहेला 'नाद' । ति' अने 'स्वर' विशे अहीं. भूमिकारूपे थोडं जोई जवु उपयुक्त छे, केमके ए 'तत्वत्रयो' साथे 'रक्ति'नो अविच्छिन्न संबंध छे..
'नाद' 'श्रुति' अने 'स्वर' पर वर्तमान काळे थयेली चर्चामां पंडित ओमकारनाथ ठाकुरे प्रमाणमा तलस्पशी, सयुक्तिक, शास्त्रना मर्मने स्फुट करती, नक्कर तेम ज केटलेक अंशे पारगामी कही शकाय तेवी चर्चा करेली छे.' ते पछी 'श्रुति' अने 'स्वर' विषय पर थयेली प्रा. सत्यनारायण अने ताजेतरमा ज दा० शृंगी द्वारा थयेली चर्चा तत्त्वावगाहिनी होवा उपरांत शास्त्राधारित, सुतार्किक, मर्मग्राही अने वैज्ञानिक पण छे. पं. भातखंडे आदि अप्रचारिओ अने तेमने अनुसरवावाळाओ जे समजवामां निष्फळ गयेला, तेने अहवामां पंडित ओमकारनाथ ठाकुर महद् अंशे सफळ रहेला, अने ए ज वस्तुने वधारे विशाळ,