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र. म. शाह
३. गजसुकुमाल संधि आदि-आसि नयरि बारवई पसिद्धिय, सा व ...सुवन्न-समिद्धिय ।
जा जोयण बारह दीहत्तणि, सक्कि कराविय नव-पिहुलत्तणि ॥१॥ अंत -- इय गयसुकुमालिहि, चरिउ अबालहि, अइ-साहस-निव्वाह-वरु ।
जो पढइ भत्तिभरि, गुणइ महूर-सरि, जाइ दुरिय सुदुरिय भरु ॥८५॥ ___घत्ता-६, १३, १९, २५, ३१ व. गाथामां.. ४. शालिभद्र महर्षि संधि आदि-सालिगामु नामेण पसिद्ध उ, आसि गामु धण-धन्न-समिद्धउ ।
धन्ना नामि का वि विहवंगण, तहिं कम्मयरी आसि अकिंचण ॥१॥ अंत-इय ते खोणाउय, जाया अब्भुय, दो वि देव सबढि वर । ___ अह तम्मि विमुकद, नर-भवि दुक्का, सिज्झिस्सहिं निरु एत्थु धर ॥९४॥
___घत्ता-६, १२, १८, २४ व. गाथामां. ५, अवन्तिसुकुमाल संधि आदि-इह अस्थि नयरि नामिण अवंति, जहिं तुंग चंग चेइय सहति । ___ तह ताण पुरउ सुपयट्ट नट्ट, चच्चर-चउक्क-चउहह-हट्ट ॥१॥
अंत-कालक्कमि जायउ, सो विक्खायउ, तित्थु तित्थु लोयहं तणउ । ___ महकालु कहिज्जइ, अज्ज वि विज्जइ, मुणि सियालि रूवग जुयउ ॥५७।।
___घत्ता-५, १०, १५, २० व. गाथा. ६. पुरणर्षि संधि आदि-अस्थि एत्थु जि भरहवासम्मि बेभेलउ नामि पुरु
वावि-कूव देवउल-समन्निउ, तहिं निवसइ सव्वगुणु पूरणु ति उत्तम कुटुंबिउ । जसु दीसहि घरि उक्कुरुड कंचण धण धन्नाह,
जे पुण हरि करहप्पमुह संख कु जाणइ ताह ॥१॥ अंत-चमरु पत्तउ चमरचंचाहिं अच्चेवि नच्चेवि
तर्हि पुप्फवुहि तुहउ विसज्जिवि, । परमप्पय पहु पुर उत्तर सदहु संगे उ सज्जिवि । अवसरि वीर जिणेसरु वि काउसग्गु पारेइ, जिव जंगमु वर कप्पतरु महिमंडलि विहरेइ ॥३२॥