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सागरचंद-राज वद्धउ जेण जिणेविणु इंदो
नव गह वह पाह स इदो ॥ भाइ विहीसणु जाम् अन्नु वि कुभयन्नो घण वाहण-इदइया पुत्तेहि सउन्नओ ॥७३
जो विजाप सहसू धरेई
जसु जसु जगि पयडतु भवेद ॥ जासु पुरी वर लका नव-जोयण-पिहुला दोहत्तहिँ सा नीसा मणि-कचण-साला ॥७४
एवविह-वल-जुत्तउ रावणु
दुग्जउ वरिय-भड-भजावणु ॥ तावच्छउ रणु दूरे जो नरु तहि जाए पत्यु न देकववि सो-वि राहव सुणि भाए ॥७५
एक्कु मुयवि पवणजय-पुत्तो
विम्जाहरु वलियउ हणुयतो' ॥ हक्कारिउ सिरिसेलु पट्टवियउ लकह 'जाह जिणे तुहुँ समरे विजाहर वहुए ॥७६
सपत्तउ लंका-पुरि पारे
वेयालिय जीतिय पुणु समरे ॥ पाठउ लकह मग्झे हणुयउ नदन-वणि सा देखा वइदेही शायती रघु-मणि ॥७७
नावइ पउमिणि रवि-अत्थवणे
नावह सा रयणी[7A] ससि-विरहे ॥ विरलिय-केस-कलावा मलिणसुय-धारणि सयलाहरण-विमुक्का तह-वि हु मण-हारिणि ॥७८
पुणु पणमह हणुयउ पइसेवी
सभासह सीय वि विहसेवी ॥ 'खेमु कुसल रे हणुया पिय-माय-सपुत्तहँ
कहि कुसलं सुह-वयणो लच्छीहर-जुत्तह' ॥७९ ७.१ गह सटह २ 'सा' सुधार कर 'स' ६ सउतमो. ७६ १ पषणजय कारित