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सागरचंद-राउ
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कमलाणणि मुह नेत्ते घण-पीण-पओहरि 'सुंदरि सुहवे मुरूवे तिवलिय-खामोयरि ॥५९
किं मइ निठुर-हिय नीकरुण.
सारस चक्क विओइय मि[5 BJहुणई ।। कि सुर-खयर-जुगाइ विहडिय दुक्खत्तइँ किं लय-वल्लि गणाइ ऊखणिय फलंत. ॥६०
हा हा रेरे विहि अ-वियक्खण
जइ महु दीन दय सुह-लक्खण ॥ ता अवहारिय कीस हय मुक्ख अयाणा किं तुहु सयण न वधु सुहि मझु समाणा ॥६१
सेणिय तासु विलाव अणंता
को सका वन्नेवि महंता ॥ जा आवइ सोमित्ती मारिउ खरदूसणु ता देक्खइ निय भाया सीयह विणु दूमणु ॥६२
करुण पलाय करेविणु तत्था
गय पायाललंक सु-विसस्था ॥ वत्त सुणेविणु ताण वानर-सूगीवो भावइ चलण-पणामे छरिवि निय दीवो ॥६३
चलण नमिवि पभणइ कवि-नाहो
'निसुणहु वयणु अम्ह पउमाहो ।। अत्थि पिया महु तणइ तारा नामेण साहसगइ-कुमरेण ऊदालिय तेणं ॥६४
करेवि विजाइ वि महु रूवो
मुंजइ तारा वलि(१) सुग्गीवो ॥ अप्पावहि महु देव तुह् आणा-किंकर' पुणु वि य जपए वयणु सुग्गीव-महानरु ॥६५
नि[6A]सुणहु सामिय वयणु महारउँ
जं नेमित्तिई कहिउ सु-सारउँ ॥ १. 1. यविश्वम ६२ २ वनिषि ३. सोमेत्ती ६५ १ रुवो ५ माहा'.
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