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________________ सागरचंद-राउ १० कमलाणणि मुह नेत्ते घण-पीण-पओहरि 'सुंदरि सुहवे मुरूवे तिवलिय-खामोयरि ॥५९ किं मइ निठुर-हिय नीकरुण. सारस चक्क विओइय मि[5 BJहुणई ।। कि सुर-खयर-जुगाइ विहडिय दुक्खत्तइँ किं लय-वल्लि गणाइ ऊखणिय फलंत. ॥६० हा हा रेरे विहि अ-वियक्खण जइ महु दीन दय सुह-लक्खण ॥ ता अवहारिय कीस हय मुक्ख अयाणा किं तुहु सयण न वधु सुहि मझु समाणा ॥६१ सेणिय तासु विलाव अणंता को सका वन्नेवि महंता ॥ जा आवइ सोमित्ती मारिउ खरदूसणु ता देक्खइ निय भाया सीयह विणु दूमणु ॥६२ करुण पलाय करेविणु तत्था गय पायाललंक सु-विसस्था ॥ वत्त सुणेविणु ताण वानर-सूगीवो भावइ चलण-पणामे छरिवि निय दीवो ॥६३ चलण नमिवि पभणइ कवि-नाहो 'निसुणहु वयणु अम्ह पउमाहो ।। अत्थि पिया महु तणइ तारा नामेण साहसगइ-कुमरेण ऊदालिय तेणं ॥६४ करेवि विजाइ वि महु रूवो मुंजइ तारा वलि(१) सुग्गीवो ॥ अप्पावहि महु देव तुह् आणा-किंकर' पुणु वि य जपए वयणु सुग्गीव-महानरु ॥६५ नि[6A]सुणहु सामिय वयणु महारउँ जं नेमित्तिई कहिउ सु-सारउँ ॥ १. 1. यविश्वम ६२ २ वनिषि ३. सोमेत्ती ६५ १ रुवो ५ माहा'. -
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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