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________________ सुषमा कुलश्रेष्ठ प्ररोचना-ना० शा० तथा सा० द. के अनुसार अर्थ के उपसहार को दिखलाना प्ररोचना कहलाता है। दशरूपक के अनुसार जहाँ कोई व्यक्ति अपने वचनों के द्वारा भावी घटना की सूचना इस प्रकार दे जैसे वह कोई सिद्ध व्यक्ति हो, वहाँ परोचना नामक विमांग होता है । किरात० के अष्टादश सर्ग के १३ वें से १५ वें श्लोक तक यह अग प्राप्त होता है जहाँ वर्णन है-'प्राणिमात्र के कर्मों के क्षयकारी भगवान् शकर ने अर्जुन के उस पादग्रहण रूप कर्म से माश्चर्यचकित होकर पृथ्वी पर उन्हें फेंक देने के अभिलाषी अक्लान्त अर्जुन का इदय से आलिंगन किया । शंकर जितना अर्जुन के धैर्य और साहस से प्रसन्न हुए उतना तपश्चर्या से नहीं क्योंकि सत्पुरुषों का पराक्रम गुण की राशियो की अपेक्षा अधिक साहाय्य प्रदान करता है । तुषारतुल्य धवल भस्म लगाये हुए, शिरस्थ चन्द्रलेखा से सुशोभित, अतिरमणीय अपने शरीर को पुन धारण करते हुए शंकर भगवान् को देखकर पाण्डुपुत्र अर्जुन ने प्रणाम किया।' यहाँ अर्थ का उपसंहार दर्शाया गया है क्यो कि शिव का अर्जुन की तपश्चर्या से प्रसन्न हो किरातवेष को त्याग कर अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो अर्जुन का मालिंगन करना नायक अर्जुन की भावी सिद्धि का सूचक है । अतः यहाँ ना० शा० और सा० द० के अनुसार प्ररोचना नामक अग है । विचलन- इस सन्ध्यग का उल्लेख ना० शा. और सा० द० में नहीं है। दशरूपक के अनुसार जहाँ कोई पात्र आत्मश्लाघा करे वहाँ विचलन अंग होता है।' यह अंग किरात में प्राप्त नहीं होता। ___आदान-जब नाटकार अथवा काव्यकार उपसंहार की ओर बढ़ने की कामना से नाटक अथवा काव्य की वस्तु के कार्य को संगृहीत करता है (समेटने की चेष्टा करता है) तब वहाँ आदान विमर्शाग होता है । मष्टादश सर्ग के ४३ वें श्लोक में यह अग प्राप्त होता है । अर्जुन शंकर भगवान् से कहते हैं—'हे धर्मव्यवस्थापक ! आस्तिक्य मति के कारण विशुद्ध धर्म की रक्षा करते हुए युधि१ मा० मा० -- प्ररोचना च विझेया सहारार्थप्रकाशिनी ।२१।९६ सा०२० - प्रोचना तु विझेया संहारार्थप्रदशिमी ।६।१०६ २ दशरूपक - सिद्धामन्त्रणतो भाविदर्शिका स्यात्प्ररोचमा ।११४७ १. दशरूपक --- विकस्थमा विचलमम् ॥११४८ १ मा० शा० - बीजकार्योपगमनमादानमिति संशितम् ।११।९५ दशरूपक -- आधान कार्यसंग्रह १४८ सा० द.- कार्यसंग्रह मादानम् ॥१०॥
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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