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________________ सुषमा कुलश्रेष्ठ उन्हें पञ्च-सन्धियों की योजना महाकाव्य में अभीष्ट है, तब सन्ध्यङ्ग-योजना मी उनकी अभीष्ट ही होगी। हाँ, यह हो सकता है कि इसका अलग से निर्देश करना उन्होंने भावश्यक न समझा हो । साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने 'सन्ध्यझानि यथालाभमत्र विधेयानि" कहकर स्पष्ट निर्देश किया है कि महाकाव्य में सन्ध्यङ्गों का भी यथासम्भव सनिवेश करना चाहिये । इस प्रकार यह सुनिश्चित है कि महाकाव्य में सन्ध्यङ्ग-निवेश की ओर भी महाकाव्य-रचयिताओं का ध्यान अवश्यमेव गया था । यही कारण है कि सस्कृत के महाकाव्यों में अनेक सन्ध्यङ्ग प्राप्त होते हैं । महाकाव्यों में सन्ध्यङ्गों के प्राप्त होने पर भी हमारे टीकाकारों ने उनकी मोर ध्यान देने की आवश्यकता ही नहीं समझी और उनकी पूर्ण उपेक्षा की। उनकी दृष्टि नाटकों में ही सन्ध्यङ्गों को खोजने में उलझी रही। नाव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में ६४ सन्ध्यङ्गों का उल्लेख हुमा है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि कवि अपने नाटक अथवा काव्य में सब सन्ध्यङ्गो का सन्निवेश अवश्य ही करे । वह उनके मावश्यकतानुसार सन्निवेश में स्वतन्त्र है। प्रत्येक सन्धि के अजों में एक निश्चित क्रम हुमा करता है किन्तु कथावस्तु के विकास की आवश्यकता को देखते हुए कवि उनके क्रम में परिवर्तन भी कर सकता है। नाटक या काव्य में प्रत्येक सन्धि का अपना एक क्षेत्र होता है और उसी क्षेत्र में उस सन्धि के अन्न सन्निविष्ट होते हैं किन्तु कभी-कभी किसी भी सन्धि के भङ्ग रस की आवश्यकता के अनुसार अन्य सन्धि के क्षेत्र में भी समाविष्ट किये जा सकते हैं क्योंकि रस की ही प्रधानता मानी गई है। इस प्रसङ्ग में रुद्रटादि आचार्यों का यह जो मत है कि सब सन्ध्यङ्ग यथास्थान ही निविष्ट होने चाहिये-उपयुक्त नहीं है क्योंकि उदाहरणों में इसके विपरीत देखा जाता है। __ भारविप्रणीत किरातार्जुनीय महाकाव्य में पाँचों सन्धियों तथा ५२ सन्ध्यङ्गों की सुन्दर योजना हुई है। प्रस्तुत लेख का विषय उक्त काव्य में विमर्श सन्धि तथा उसके अङ्गों का विवेचन है। ' १ सा. ६०-६। महाकाव्यपक्षण पर वृत्ति, पृ० २९५ २. सा. द०-६।११५-११६ १ सा. ६०-यतु रुद्रटादिमि नियम एष' इत्युकं तस्वयविरुखम् । ॥६।११५-११६ पर वृत्ति
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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