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________________ 3 On Some Specimens of Carcari सिदिलिऊण दइय पियगुदलसालर्य, कोइ सिहिणघणफलहरवच्छविसालय । णदण व विरहुग्गयतावपणासर्थ, सामिकज्जि बहु मण्णइ णवर पवासय ॥ ९० अण्णाए कंठवलय, मोइज्जह कह वि ओसुहेल्लयपि । सुहण सामिकज्जए, दइयालय सिणेहपासय व ॥ ९१ बिल्लुलियासि दिलकेस चटुलीकयचचलवालयं, सठवेसु देवरतणुतरलयवालय । भइ कोइ मह सुन्दरि । मुय माणल्लय, वयणय च मा वुब्भउ बाहजलोल्लय ॥ ९२ उप्पती कवय, कीए वि रक्खासह ति दइयस्स । आलिंगिज्जइ बहुसो, गुणाण रज्जइ जणो ण रूवरस ॥९३ जंतदइयमवयच्छिय कीए विसालय, उण्णवेवि मुहमु भडजणियविभलयं । दुण्णिमित्तसकाए विसायव सुब्भर, वाहओ पहोलिज्जइ लोयणमज्झ ॥ ९४ सुपडित्थिर परिसप्पय, को वि समारुहइ ससए वि मिलियाण । ववसायं पि व तुरययं, सहाययं आवईए ससियाण ॥ ९५ को विगलियकरडयडपलोट्टियदाणय, गुरुविपक्खभेयक्ख मदीहविसाणय | णिययपुरिसयार पिव परभडभंजयं, आरुहेइ गुरुमयगलमइदप्पुञ्जय ॥९६ कवि गभत्ति दयओ, विरह भयाहित्थवेविरगयाइ । अविलम्बियाइ तुरियय, वयसियाए व्व णवर मुच्छ्याए ॥९७ 190, Ibid, p 11 25 28 अवि य - 23 सुरहिपरिमल्लद्दामपलोट्टियदाणओ चूयमजरीजालविर्णित विसाणओ । गयवतीण वित्था रियविरहदुहासओ वारणो व्व पवियम्भइ माहवमासओ ॥ १३७ कयगुरु विरहुव्वेयय, भमतभसला लिया समीवयम्मि । पहिएहिं सभमाउल, पलोइया कुवियकालसकलो व्व ॥ १३८ Ibid, p 190, last line - p 191, 11 1-3 --- एत्थतर म्मिय पढिय बदिणा उच्छलन्तकलचच्चरिरुजियरसणओ घवलमल्लिउम्मिल्लियदीहरदसणओ । चडुलपल्लवुव्वेल्लिरतर लियजीहओ महुणिहाइ | पवियम्भइ माहवसीहओ ॥ १३९ जह जह दाहिणपवणओ णराण परिमुसद् मासलगयाई । मयणग्गिणा समहियं तह तह संतावियाई हिययाइ ॥ १४०
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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