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________________ १२ गुणसमिद्धिमहत्तराविरश्य तं कम्म अणुहूयं तुज्झ पसाएण रइसुह जायं । सपद तुह गुरुकग्ज ता साहिज्जउ लहु देव | ॥२१० ॥ सतु सिवा तुह पथा विजयसिरी हवउ सगुरुज्जम्मि । पुण आगमणे गेह महापसाय कुणसु सामि | ॥२११॥ अन्न च रिउन्हाया इन्हिमह सामि । जइ विकम्मवसा । होही गन्भो तो मे गुरुजणमज्झे कहूँ ठाण ' ॥२१२॥ कुमरो नियनामंकियमुद्द साऽऽगमणसूयय देइ । 'दसिज्ज इम समय पच्चइहेउ गुरूण पिए' ॥२१३ ॥ तद्वाणाओ कुमरो कत आसासिऊण महुरगिरा । पत्तो विहायरति माणससरकडगउत्तारे ॥ २१४ ॥ अह तीय अजणाए ती [ Fohos 11-12 missing ] खंडम्म | सिरिमंदिर सुनयर रिद्धिसमिद्ध पुरा आसि ॥ २६० ॥ तम्मि य नयर लोभो चाऊवन्नो सयाइ परिवसइ । पियनंदी वाणियभ वणियकलाकुसलओ मासि ॥ २६९ ॥ तस्स पुण जया जाया, जायारुवाइ ( 'जायऽणुरायाइ) सजय ताण । विसयं सेवंताण दमयतो नंदणो हुत्था ॥२६२॥ सवकलासपुन्नो विसेसओ धम्मकज्जि उज्जुत्तो । विजयाईहिं गुणहिं पियराण रजए हियय ॥ २६३ ॥ अन्नदिणे दमयंती समाणमित्तेहिं सह नयरबाहि । उज्जाणे उज्जाणीकीला सुक्ख अणुहवेह् ॥ २६४॥ कीलतो दमयतो तत्थेग झाणमाणस सुमुणिं । मुत्तिमंत व धम्म दठु भइहरिसिभ जाओ ॥२६५॥ पचगपणामेण त पणमह, साहुणा तभो दाउ । सद्धम्मलाभआसी, पारदा तस्स घम्मका ॥ २६६॥ 'भो मद्द ! इम सव्वं रिद्विफल तुज्झ धम्मओ जाये । ता इन्द्रि पि विमोहो चरितघ्रम्मे षिय कुणह( सु)' ॥ २६७ ॥ मुणिवयणा संसारा (ससारस्सऽ ) निच्चय जाणिऊण मुणिपासे । गिन्हइ सजमरज तिण व छवि गिहिवास ॥२६८॥ पालेड़ सजम सो सिक्खह किरियाह (ओ) पढह नाणा | अपमन्तो दमयतो कुणइ तव बहुविह साहू ॥ २६९ ॥
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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