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________________ अजणासुंदरीकहाणयं आसासए उ सा तुह जुज्जड नियसगभोगदाणेहिं । अणुजाणाविय कत महुगिरा पुण इहागच्छ' ॥१९५।। भोगतरायकम्मे खीणे अजणमहासईए उ ।। पियसगसुहुत्तालो तत्थ न चिट्ठइ खण हक्क ॥१९६॥ आरुहिऊण विमाणे आगच्छइ कमर, पहसिया दो वि । वद्धावणिय लेउ पहसियमित्तो गओ अग्गे ॥१९७॥ तत्तो मित्तो गतु वद्धावइ मजणासह तइया । 'भद्दे ! तुह भत्तारो समागओ तुह समीवम्मि' ॥१९८॥ देवी जपइ पहमिय ! सभवइ कह समागओ मामी ।। को उवहासो सपड किज्जह मह मदभग्गाए । ॥१९९॥ जेण सुहदिट्ठीए पसायपत्त पिएण न कया ह । मो सामी कमेही मम देवह्याइ पासम्मि " ॥२०॥ 'न हु उवहासो किंचि वि सच्च मक्खेमि हे सुयणु । तुम्ह' । इय पहसिए भणते समागओ कुमरु तत्थेव ॥२०१।। भत्ताआगमणेण हरिसो नो माइ अजणाअगे । अहवा जुत्तो अत्थो पियमेले कस्स नो हरिसो । ॥२०२॥ जह दारिदिनराण निहाणलाभेण जायए हरिसो । तह अजणाइ जामो आणदो तस्स मागमणे ॥२०३॥ अंजणसुदरिदेवी बहुहरिसभरेण विणयपुव्व च । पवणजयस्स अभिमुहमन्मुद्राण करइ सहसा ॥२०४॥ परमरसभरियचित्तो कुमरो तीए समं जहिच्छाए । पचविह विसयसुक्ख सम्माणइ सव्वरत्तिमवि ॥२०५॥ वुत्त कुमरेण 'मए मूढेण कयाइ तुज्झ पाणपिए । । सुहदिट्ठी वि न दिन्ना का वयणकहित्तियं काल ॥२०६॥ ता फते । सव्वमिणं अवराह खमसु मम्झ मूढस्स । संपइ मम गुरुकज काय ताऽणुजाणेहि ॥२०७॥ अह वुत्तमजणाए 'को दोसो अज्जउत्त ! रे म( तु)ज्छ । दोसो पुव्वकियाण कम्माण एस सजामो ॥२०॥ भोगतरायकम्मोदएण जीवेहिं भोगसामग्गी । पत्ता वि हु न लहंती भोगसुहाइ कया वि पिय । ॥२०९॥
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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