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________________ यहाँ इतमा ध्यान लेना जरूरी है कि जैन हो या बौद्ध दोनोम जिन सिद्धान्तों को पाची की गई है उनकी व्यवस्थाके लिए पर्याप्त समय व्यतीत हुआ है। ये सिद्धांत प्राथमिक भूमिका में ही स्थिर हो गये हो एमा नहीं है। जैन और और दोनों अध्यात्ममार्ग पर बल देनेवाले धर्म है। ये दोनों साधना के रामिवाण प्रालिका माग दिखाते हैं । जैनके मतमें आत्मा एक स्वतन्त्र द्रव्य है जिनके विविध परिणाम होन है किन्तु बौद्ध धर्मका मानना है कि आत्मा कोई स्वतन्त्र द्रव्य मही ति चिन्ता धारा या समरिका माम अल्मा दिया गया है । आत्मा मामा जाय या मही न्दिोगाने अनादिक रमे जन्म-परंपरा या ससारका चक तो समानभावसे माना है और रोन का उसयस जमराका निराकरण काना यह है । आत्माको द्रव्य मानकर जैन समके विविध परिणामोक द्वारा पुनर्ज म गौर ससारचक्र की घटना समझाते हैं और बौद्ध गो-भये किलकि बाद या चित्लसनामके द्वारा समारचक्रकी उपपत्ति करते हैं। बौद्धो में एक पमा भी मप्राय हा सो पुदगलके नामसे आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व मानता था और पजन्मके चककी उपपत्ति करना था किनु आत्मव्यका स्वीकार बौद्धोके द्वारा समत धर्मबमिशन्य, केवल धर्मको कल्पनाके साथ संगत नहीं होनेसे उस मान्यता को बल मिला नहीं। र भी परे हा महायान भालयविज्ञानके नामसे भात्मा जैसा तत्त्व मा ही गया जिससे इनारा पाना दार्शनिक कालके बौद्धके लिए कठिन हो गया । जो भी हो किन्तु जैन-बौद तेनाने ममारक काटनेके उपायों को मानकर निर्वाणका मार्ग प्रशस्त किया है-इसमें तो मदेह नहीं है। भवहारिक भाषा जैन और बौद्ध में अन्तर होने पर भी लक्ष्यकी दृष्टिसे दोनों एक ही रिका नामी है-ऐसा कहा जा सकता है। शास्त्रमे जैनों के द्वारा सचेतन पदार्थ के लिए आत्मा माजीव शन्द का प्रयोग होता है। कि तु बौद्धोके द्वारा मस्व या पुद्गल शब्दका प्रयोग होता है। यहाँ हम दोनों के लिए आत्मा धन्दका ही प्रयोग करेंगे। प्रेक्षकी प्राप्तिको योग्यता रखनेवाले आत्मा को जैन भव्य सज्ञा देता है और उस योग्यतासे परमात्मा समय है। अर्थात् मान्यता ऐसी है कि ससारमै जितने भी भात्मा में ऐसे भी है जिनका मोक्ष कभी होगा हो नहीं। ऐसी ही मान्यता बौखोमें भी देखी जाती है। उनका अनुमार आत्माके दो मेद है गोत्र भौर भगोत्र । गोत्र की तुलना मासे और भगोत्रकी तुलना भभष्यसे है। जैन और बौद्ध दोनोंके अनुसार निर्वाण हो जानेके बाद भवभ्रमण महीं होता अर्थात पुम मरेनेकी कोई गुमाईश नहीं । यदि सभी का निर्वाण हो जायगा तो ससार भात्मासे रिका जाएगा इस प्रश्न उत्तर की तलाशमैसे या मो जिन या मुखके बताए मार्गका कमी अनुसरण नहीं करता तो उसको क्या गनि हो-ऐसे प्रश्न के उत्तरकी तलाशमसे भव्यअमम्य और गोत्र-अगोत्रकी कल्पना का जन्म हुआ होगा-ऐसा संभावित है। भव्य और गोत्रमैसे मोमभी मोक्षमा निर्वाण को प्राप्त होगे ही- ऐसा भी नियम नहीं है। योग्यता होने पर उस योग्यताके कार्यकारी होने का भनिवार्य नही-ऐमा भी जैन-बौद्ध दोनोंने माना है । जैम ऐसे मम्मों को दुर्भय हते हैं, और यौद्धोमे उसे आत्यन्तिक अनैर्यामिक बोधिचित्त महा
SR No.520751
Book TitleSambodhi 1972 Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages416
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size11 MB
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