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जैन गुणस्थान और योधिचर्याभूमि'
दलसुन्न मालवणिया भारतमें योगप्रक्रियाका संपूर्ण इतिहास लिखा जाना अभी बाकी है। किन्तु यह संभावना तो विद्वानोको संमत है कि सिंधुकी मार्यपूर्वकालीम प्राचीन संस्कृतिमें जो मुबाएं मिली है उमका संबन्ध योगसे है । भद्यतन भारतीय संस्कृतिमें वैदिक और भवैदिक दोनोमें योग का स्थाम महत्त्वपूर्ण है । इतना ही नहीं किन्तु योगका अंतिम लक्ष्य निर्वाण श मोक्ष समान एक जैसा है-यह सूचित करता है कि समग्र योग प्रक्रियाका मूलस्रोत एक ही है। यहाँ संक्षेपमें भवेदिक संस्कृति जैन और बौद्धको योग प्रक्रियाका साम्य-वैषम्य दिखाना अभिप्रेत है। किन्तु यह दावा नहीं कि यहाँ सपूर्ण बातों का निर्देश है। कुछ हो महत्वपूर्ण तथ्योन निर्देश करमा अभीष्ट है-यह इस लिए कि विद्वान इस विषय विशेप अभ्यासके लिए प्रेरित हो।
जैनोंमें आत्मविकासके सोपान का सामान्य नाम जोवसमास या गुणस्थान है । महायान पौडोमें बिहार या भूमि नामसे इनका निर्देश है। जैनोमै गुणस्थान चौदह है और योमें महायानमें बिहार १३ हैं, भूमि साप्त या दश हैं । भाचार्य अगंगने विहार और भूमिभोग समीकरण किया है । हीनयानी बौनि सोतापस्ति भादि चार सोपानोका निर्देश है-पर पस्तुत भति संक्षेपमें विकासक्रमके सोपान समझने चाहिए।
वैदिक और अवैदिक-दोनोमै माध्यात्मिक विकासके लिए स्वामका महत्व स्वीकृत है।
भूमि और गुणस्थानोंकी इस बात सहमति है कि प्रथम सम्पष्टिका काम जमी है। उसके बाद विशुद्धशामकी प्राप्ति होती है। उसके बाद कोश या पार्यो मिवारण होता है इतमा होने पर ही सर्वोत्तमशान केवलज्ञान या सर्वशवका लाभ होता है। यही प्रक्रिया रिक समत योगमार्गमें भी देखी जाती है । क्लेशके निवारणकी प्रक्रियाम मी सपशम और सबदोनों प्रकार सर्वसंमत जैसे है। उपशमकी प्रक्रिया में उपशान्त दोष जब भपमा पर्वकरना एन. शुरू करता है तब पतन होता है और ऐसा पतन क्षयकी प्रक्रिया संभव नहीं, वह मी सर्वसंमत बाप्त है। महायान में भौर हीनयानमें मी कलेशोंके मापासे निर्वाण मामा मया है। सर्वशत्यकी प्राप्ति निर्वाण के लिए भनिवार्य नहीं । महायानके अनुसार देशावरमका मिषारण वही करेगा जिसे सम्पपसषुद होना है। महंत के लिए क्लेशावरणका निवारण ही पर्याप्त समझा गया है। किन्तु जैन तीर्थकर हो या सामान्य वीतरागी-दोनों के लिए शामावरमका निवारण अनिवार्य है इतना ही नहीं किन्तु क्लेशावरमके निवारणके होते ही सामावरणका निवारण हो ही जाता है । और बिना इस के निर्वाण या मोक्ष संभव ही नहीं । महायान यावरम के निवारणका विशेष प्रयत्न अपेक्षित है।
१ वाराणसेय संस्कृत विश्व विद्यालय में ता० २१-१-४॥के दिन होनेवाले बौद्ध योग तथा अन्य भारतीय साधमानोंका समीक्षात्मक अध्ययन सेमिनारके लिए लिसा गया।