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________________ गन्धकुटी पर आसीन कर दिया। लोक के सारे समत्व को उसने विषम कर दिया, वह आज अर्हन्त महावीर का दायाँ हाथ हो गया।' ‘महावीर ने कुछ न किया, राजन्, श्रेणिक स्वयम् वह हो गया। वह अर्हत् के सम्मुख आते ही निःशेष समर्पित हो गया, तो अनायास सम हो गया। और सम दूसरे से नहीं, अपने से पहले आता है, और दूसरे तक जाकर उसे सम कर देता है। यही सत्ता का स्वभाव है, महाराज।' क्षणैक चुप रह कर भगवान फिर बोले : ___ 'मानस्तम्भ देखते ही श्रेणिक का अहम् कैचुल की तरह उतर गया। वह नग्न निर्वसन ही महावीर के सामने आया। अहम् से मुक्त वह निरा स्वयम् और सम ही प्रस्तुत हुआ। समत्व आते ही, स्वामित्व उसका लुप्त दीखा। उसने अपने मम को हार दिया महावीर के सामने। वह हतशस्त्र और हतयुद्ध दिखायी पड़ा। स्वामित्व उसने त्यागा नहीं, वह आपोआप छुट गया। वह लौट कर राजगृही के साम्राजी सिंहासन पर नहीं बैठा ।' _ 'लेकिन गणेश्वर चेटकराज, महानायक सिंहदेव और अष्टकुलीन राजन्य समत्व के इस समवसरण में आकर भो नमित न हो सके। अपने को हार न सके । वे महासत्ता के समक्ष अपनी राजसत्ता का दावा ले कर आये हैं । श्रेणिक और उसका साम्राज्य उनके अस्तित्व की शर्त है। वे अपनी हार-जीत के स्वामी नहीं, उसका निर्णायक उनके मन श्रेणिक है। श्रेणिक को हराने पर उसकी विजय निर्भर करती है। जो इतना परतंत्र है, वह प्रजातंत्र कैसा? जिसका स्वामित्व औरों का कायल है, वह स्वामी कसा ? और दासों का तंत्र स्वाधीन गणतंत्र कैसे हो सकता है ?' काँपते स्वर में महाराज चेटक ने अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाही : _ 'जो भी सीमाएँ या टियाँ हमारी हों, पर वैशाली आज संसार के गणतंत्रों का मुकुट-मणि माना जाता है। यह तो आकाश की तरह उजागर है, प्रभु ! यह दासों का नहीं, स्वाधीन नागरिकों का तंत्र है।' तपाक से महावीर का प्रतिकार सुनायी पड़ा : 'प्रात:काल की धर्म-सभा में वैशाली के जनगण ने अपने शासक राजतंत्र को नकार दिया, महाराज! वैशाली में गृहयुद्ध और खुनी क्रान्ति का दावानल धधक रहा है। एक ही जंगल के पेड़ परस्पर टकरा कर अपने ही अंगों में आग लगा रहे हैं। इस अराजकता को स्वराज्य कैसे कहूँ, महाराज !' यह राज्य-द्रोह है, यह गण-द्रोह है, भन्ते त्रिलोकपति । आपने इस द्रोह का आज समर्थन किया, उसे उभारा।' तीर्थकर : अप्रैल ७९/२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520604
Book TitleTirthankar 1978 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1978
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size6 MB
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