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कारा!
दिव्य चेतना की सरिता का भंगुर देह किनारा, काट रही है क्षण-क्षण जिसको सतत समय की धारा,
किन्तु उदधि तक पहुँचाने का पुद्गल स्वयं सहारा, लीन परम में होते ही यह छूट जाएगी कारा।
कन्हैयालाल सेठिया
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