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अनुत्तर योगी : तीर्थंकर महावीर चार खण्डों में संपन्न वीरेन्द्रकुमार जैन का एक बहुपठित और बहुचर्चित
__महाकाव्यात्मक उपन्यास
प्रथम खण्ड : वैशाली का विद्रोही राजपुत्र : कुमार-काल द्वितीय खण्ड : असिधारा-पथ का यात्री : साधना तपस्या-काल तृतीय खण्ड : तीर्थंकर का धर्म-चक्र-प्रवर्तन : तीर्थंकर-काल चतुर्थ खण्ड : अनन्त पुरष की जय-यात्रा (शीघ्र प्रकाश्य)
प्रत्येक खण्ड का मूल्य रु. ३०-०० 'अनुत्तर योगी' एक ऐसी अद्भुत कृति है, जिसे देश के कोने-कोने से सराहा गया है
१. 'मैं समझता हूँ कि आने वाले समय में यह रचना वैसे ही लोकप्रिय एवं श्रद्धास्पद बनेगी जैसी तुलसी-कृत रामचरितमानस शीर्षक रचना बनी हुई है। सजेता का परिश्रम एवं अनुचिन्तन फलदायी सिद्ध हुआ है।'
-एलाचार्य विद्यानन्द मुनि २. 'ललित शब्द-विन्यास में शब्दातीत को सशब्द और भावों की अभिव्यंजना में भावातीत को प्रभावी बनाने में श्री वीरेन्द्रकुमार जैन सफल हुए हैं, यह असंदिग्ध है। भगवान् महावीर का योगी रूप सचमुच अनुत्तर सत्ता में उपस्थित हुआ है। अनुत्तर योगी को अपना स्थायी मूल्य प्राप्त होगा, यह मैं अनुभव करता है।'
-आचार्य तुलसी ३. 'महाश्रमण भगवान् महावीर के अद्यावधि जितने भी जीवन-चरित्र आँखों में छबिमान हुए हैं, उन सबमें यह अग्रिम पंक्ति में है। - मेरा यह सुनिश्चित विश्वास है कि सुचिरकाल तक भविष्य के वीर-चरित्र-लेखकों के लेखन का 'अनत्तर योगी' प्रेरणा-स्रोत रहेगा और रहेगा आधारभूमि।' -उपाध्याय अमरमुनि, राजगृह
४. 'इस शताब्दी के संसार के प्रायः सारे उपन्यास-साहित्य में से गुजर कर यह बात मैंने अनुभव की है कि 'अनुत्तर योगी' जैसी कृति कहीं भी अब तक दूसरी सामने नहीं आयी है।'
-भानीराम ‘अग्निमुख', दिल्ली प्राप्ति-स्थान : श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ प्रकाशन समिति
४८, सीतलामाता बाजार, इन्दौर ४५२००२ (म.प्र.) तीर्थंकर : नव.-दिस. ७८
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