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मनुष्य जैसे आर्थिक स्थिति की समीक्षा करता है, उसी प्रकार उसे अपने जीवनव्यवहार की भी समीक्षा करनी चाहिये । प्रत्येक को सोचना चाहिये कि मेरा जीवन कैसा होना चाहिये ? वर्तमान में कैसा है ? उसमें जो कमी है, उसे दूर कैसे किया जाए ? यदि यह कमी दूर न की गयी तो क्या परिणाम होगा ? इस प्रकार जीवन की सहीसही आलोचना करने से आपको अपनी बुराई-भलाई का स्पष्ट पता चलेगा । आपके जीवन का सही चित्र आपके सामने उपस्थित रहेगा । आप अपने को समझ सकेंगे। ब्यावर, ८ सित. १९४१ -मुनिश्री चौथमलजी म.
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